रविवार 9 अक्टूबर को आश्विन माह की अंतिम तिथि है। इसे शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा का आयुर्वेद में भी महत्व बताया गया है। इस तिथि पर रात में चंद्र की रोशनी में खीर पकाने की और सेवन करने की परंपरा है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक शरद पूर्णिमा पर की गई पूजा-पाठ से भगवान की कृपा जल्दी मिल सकती है। इस पूर्णिमा पर भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ने-सुनने का भी विशेष महत्व है। भगवान की कथा सुनें और हमेशा सच बोलने का संकल्प लें।
*सूर्य पूजा के साथ करनी चाहिए दिन की शुरुआत*
शरद पूर्णिमा और रविवार का योग होने से इस पर्व का महत्व और अधिक बढ़ गया है। इस दिन सूर्य को अर्घ्य देकर दिन की शुरुआत करनी चाहिए। इसके लिए तांबे के लोटे में जल भरें, चावल और फूल डालें, इसके बाद सूर्य को जल चढ़ाएं। इस दौरान ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जप करना चाहिए। कुंडली में सूर्य ग्रह से संबंधित दोष हों तो गुड़ और तांबे के बर्तन का दान करें।
*सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास जलाएं दीपक*
पूर्णिमा पर सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जरूर जलाएं। दीपक जलाने के बाद परिक्रमा करें, लेकिन ध्यान रखें तुलसी को स्पर्श नहीं करना है। तुलसी को भी चुनरी चढ़ाएं। ध्यान रखें रविवार को तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए। अगर पूजा-पाठ में तुलसी के पत्तों की जरूरत हो तो तुलसी के पास नीचे गिरे हुए पत्ते ले सकते हैं या पुराने पत्तों को धोकर फिर से पूजा में इस्तेमाल कर सकते हैं।
*चांदी के लोटे में दूध भरें और चंद्र को दें अर्घ्य*
शरद पूर्णिमा पर चंद्र देव को चांदी के लोटे में दूध भरकर अर्घ्य देना चाहिए। साथ ही जल से भी अर्घ्य देना चाहिए। चंद्र के मंत्र ऊँ सों सोमाय नम: मंत्र का जप करें। रात में चंद्र की रोशनी में कुछ देर बैठें। खीर पकाएं और खीर का सेवन करें। ऐसा करने से धर्म लाभ के साथ ही स्वास्थ्य लाभ भी मिल सकते हैं।