नापासर टाइम्स। नापासर अंचल में आज शीतला माता की पूजा की गई। महिलाओं ने व्रत रखकर सुख, शांति व समृद्धि की कामना की। महिलाओं ने शिव सनातन संस्कृत पाठशाला में शीतला माता मंदिर में शीतला माता के बासीड़ा का भोग लगाया। जानें कुछ और परंपरा व मान्यताये-
हिंदू धर्म में अनेक देवी-देवताओं की मान्यता है। देवी शीतला भी इनमें से एक है। विवाह आदि से पहले शीतला माता की पूजा करने की परंपरा है। चैत्र मास में भी देवी शीतला की पूजा व्रत विशेष रूप से किया जाता है। इस व्रत में एक दिन पहले या हुआ भोजन किया जाता है, इसलिए इसे बासीड़ा, बसौड़ा, बसियौरा व बसोरा भी कहते हैं। देवी को भी भोग में ठंडे पकवान चढ़ाए जाते हैं। मान्यता है कि देवी शीतला की पूजा से शीतजन्य रोग जैसे चैचक, खसरा आदि नहीं होते है।
स्थानीय परंपरा के अनुसार, देवी शीतला की पूजा 2 दिन की जाती है। किसी स्थान पर चैत्र कृष्ण सप्तमी पर देवी शीतला की पूजा की परंपरा है तो कहीं चैत्र कृष्ण अष्टमी पर इन व्रतों को क्रमशः शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी कहा जाता है। इस बार शीतला सप्तमी 14 मार्च और शीतला अष्टमी 15 मार्च को है।
इस विधि से करें देवी शीतला की पूजा
• व्रती (व्रत करने वाली महिलाएं) स्थानीय परंपरा के अनुसार, शीतला सप्तमी या अष्टमी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें- –
और इसके बाद ये मंत्र बोलकर संकल्प लें- मम गेहे शीतलारोगजनित उपद्रव प्रशमन
पूर्वकायुः आरोग्य ऐश्वर्याभिवृद्धियेशीतला सप्तमी/अष्टमी व्रतं
• इस प्रकार संकल्प लेने के बाद माता शीतला की पूजा करें। जल चढ़ाएं और अबीर, गुलाल, कुंकुम आदि चीजें भी। (बासी) खाद्य पदार्थ, मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, दाल-भात आदि का भोग लगाएं। इसे बाद परिक्रमा करें। देवी शीतला की पूजा में दीपक नहीं जलाया और न ही अगरबत्ती । इसके पीछे कारण है कि देवी शीतला ठंडी प्रकृति की देवी हैं। इनकी पूजा में दीपक का प्रयोग वर्जित है।
पूजा के बाद शीतला स्तोत्र का पाठ करें, शीतला माता की कथा सुनें। दिन भर शांत भाव से सात्विकता पूर्ण रहें। इस दिन व्रती तथा उसके परिवार के किसी अन्य सदस्य को भी गर्म भोजन नहीं करना चाहिए।