नापासर टाइम्स। हम जब किसी से मिलते हैं या किसी का अभिवादन करते हैं तो नमस्कार, प्रणाम या राम-राम कहते हैं। किसी को अभिवादन करना हमारी संस्कृति ही नहीं सभी संस्कृतियों का अभिन्न अंग है। और यह परम्पराएं किसी कारण से बनी होती है। जैसे किसी को राम-राम बोलने की परंपरा। पुराने समय में गांव हो या शहर सभी जगह अभिवादन हेतु भगवान का नाम लिया जाता था। आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां एक दूसरे को अभिवादन करने के लिए राम-राम कहते हैं। लेकिन जरा सोचिए भगवान राम का नाम अभिवादन करते समय एक बार भी तो ले सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। हम किसी को अभिवादन करते समय भगवान राम के नाम का उपयोग 2 बार किया जाता है। आखिर इसके पीछे का रहस्य क्या है। चलिए आपको बताते हैं।
*राम शब्द की व्युत्पत्ति*
राम शब्द संस्कृत के दो धातुओं, रम् और घम से बना है। रम् का अर्थ है रमना या निहित होना और घम का अर्थ है ब्रह्मांड का खाली स्थान। इस प्रकार राम का अर्थ सकल ब्रह्मांड में निहित या रमा हुआ तत्व यानी चराचर में विराजमान स्वयं ब्रह्म। शास्त्रों में लिखा है, “रमन्ते योगिनः अस्मिन सा रामं उच्यते” अर्थात, योगी ध्यान में जिस शून्य में रमते हैं उसे राम कहते हैं।
*अभिवादन के समय राम नाम 2 बार क्यों बोलते हैं*
‘राम-राम’ शब्द जब भी अभिवादन करते समय बोल जाता है तो हमेशा 2 बार बोला जाता है। इसके पीछे एक वैदिक दृष्टिकोण माना जाता है। वैदिक दृष्टिकोण के अनुसार पूर्ण ब्रह्म का मात्रिक गुणांक 108 है। वह राम-राम शब्द दो बार कहने से पूरा हो जाता है,क्योंकि हिंदी वर्णमाला में ”र” 27वां अक्षर है।’आ’ की मात्रा दूसरा अक्षर और ‘म’ 25वां अक्षर, इसलिए सब मिलाकर जो योग बनता है वो है 27 + 2 + 25 = 54, अर्थात एक “राम” का योग 54 हुआ। और दो बार राम राम कहने से 108 हो जाता है जो पूर्ण ब्रह्म का द्योतक है। जब भी हम कोई जाप करते हैं तो हमे 108 बार जाप करने के लिए कहा जाता है। लेकिन सिर्फ “राम-राम” कह देने से ही पूरी माला का जाप हो जाता है।
*क्या है 108 का महत्व*
शास्त्रों के अनुसार माला के 108 मनको का संबंध व्यक्ति की सांसो से माना गया है। एक स्वस्थ व्यक्ति दिन और रात के 24 घंटो में लगभग 21600 बार श्वास लेता है। माना जाता है कि 24 घंटों में से 12 घंटे मनुष्य अपने दैनिक कार्यों में व्यतीत कर देता है और शेष 12 घंटों में व्यक्ति लगभग 10800 बार सांस लेता है। शास्त्रों के अनुसार एक मनुष्य को दिन में 10800 ईश्वर का स्मरण करना चाहिए। लेकिन एक सामान्य मनुष्य के लिए इतना कर पाना संभव नहीं हो पाता है। इसलिए दो शून्य हटाकर जप के लिए 108 की संख्या शुभ मानी गई है। जिसके कारण जाप की माला में मनको की संख्या भी 108 होती है।
*108 का वैज्ञानिक महत्व*
यहां हम अगर वैज्ञानिक तथ्य की बात करें तो 108 मनके की माला और सूर्य की कलाओं का एक दूसरे से संबंध माना गया है। वैज्ञानिक तथ्य के अनुसार एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता हैं। इसमें वह छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन रहता है। इस तरह से छः माह में सूर्य की कलाएं 108000 बार बदलती हैं। इसी तरह से अंत के तीन शून्य को अगर हटा दिया जाए तो 108 की संख्या बचती है। 108 मनको को सूर्य की कलाओं का प्रतीक माना जाता है।
‘राम’ शब्द के संदर्भ में स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा:
करऊँ कहा लगि नाम बड़ाई।
राम न सकहि नाम गुण गाई ।।
स्वयं राम भी ‘राम’ शब्द की व्याख्या नहीं कर सकते,ऐसा राम नाम है। ‘राम’ विश्व संस्कृति के अप्रतिम नायक है। वे सभी सद्गुणों से युक्त है। वे मानवीय मर्यादाओं के पालक और संवाहक है। अगर सामाजिक जीवन में देखें तो- राम आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श मित्र, आदर्श पति, आदर्श शिष्य के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। अर्थात् समस्त आदर्शों के एक मात्र न्यायादर्श ‘राम’ है।
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