नापासर टाइम्स। कल यानी 27 अगस्त को सावन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। इसे पुत्रदा एकादशी भी कहा जाता है। इस तिथि पर पूरे दिन व्रत रखते हुए भगवान विष्णु-लक्ष्मी और श्रीकृष्ण की पूजा करने का विधान ग्रंथों में बताया है।
पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि सावन महीने की एकादशी को भगवान विष्णु और शिवजी दोनों की विशेष पूजा करनी चाहिए। जिसे हरि-हर पूजन कहा जाता है। ऐसा करने से हर तरह की परेशानियां दूर होती हैं।
पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से संतान सुख मिलता है। इस एकादशी का महत्व समझाते हुए श्रीकृष्ण ने अर्जुन को द्वापरयुग के ही राजा महाजित और लोमश ऋषि की कथा सुनाई थी। जिसमें ऋषि के कहने पर राजा ने ये व्रत किया और उसे संतान सुख मिला। इस व्रत से राजा के पिछले जन्म के पाप भी खत्म हो गए।
पुत्रदा एकादशी पर सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद भगवान विष्णु की पूजा और व्रत रखने का संकल्प लें। इसके बाद भगवान गणेश और फिर विष्णु-लक्ष्मीजी की पूजा करें। साथ ही शंख में दूध भरकर श्रीकृष्ण का भी अभिषेक करें। पूरे दिन अन्न नहीं खाएं। फलाहार करें और दूध पी सकते हैं।
*पुत्रदा एकादशी व्रत और पूजा विधि*
पुत्रदा एकादशी की सुबह स्नान आदि करने के बाद किसी साफ स्थान पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद शंख में जल लेकर प्रतिमा का अभिषेक करें।
भगवान विष्णु को चंदन का तिलक लगाएं। चावल, फूल, अबीर, गुलाल, इत्र आदि से पूजा करें। इसके बाद दीपक जलाएं। पीले वस्त्र अर्पित करें। मौसमी फलों के साथ आंवला, लौंग, नींबू, सुपारी भी चढ़ाएं। इसके बाद गाय के दूध से बनी खीर का भोग लगाएं। दिन भर कुछ खाएं नहीं। संभव न हो तो एक समय भोजन कर सकते हैं। रात को मूर्ति के पास ही जागरण करें। भगवान के भजन गाएं। अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं। इसके बाद ही उपवास खोलें। इस तरह व्रत और पूजा करने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है।
*पीपल के पेड़ की पूजा करें*
जिन दंपतियों की संतान पैदा होने के बाद मृत हो जाती हो या स्त्री का गर्भपात हो जाता हो वे इस एकादशी के दिन व्रत करें। सुबह ब्रह्ममुहूर्त में किसी पीपल के पेड़ के पास जाकर उसकी जड़ में चांदी के लोटे से कच्चे दूध में मिश्री मिलाकर चढ़ाएं। पीपल के तने पर सात बार मौली लपेटकर संतान की अच्छी सेहत की प्रार्थना करें।