सोलर प्लांट बने प्रकृति के दुश्मन,राजस्थान में 5 डिग्री तक तापमान बढ़ाया: लाखों पेड़ काटने से ‘जीवन-चक्र’ तबाह, पक्षी-तितलियां गायब, खजूर-अनार का उत्पादन 75% घटा

नापासर टाइम्स। राजस्थान के चार जिलों में ‘जीवन-चक्र’ (लाइफ साइकिल) तबाह हो गया है। 26.40 लाख पेड़ कट चुके हैं। अगले पांच साल में और 38.54 लाख पेड़ और काटे जाएंगे। इससे बड़ी संख्या में तितली, पक्षी और अन्य कीट-पतंगें खत्म हो गए हैं। इसका सीधा असर पेड़-पौधों पर पड़ा है। पेड़-पौधों में फल और बीज नहीं बन रहे। जमीन बंजर हो रही है। पानी की किल्लत बढ़ रही है।

इन पांचों बर्बादी की एक ही वजह है- सोलर प्लांट। इससे 5 डिग्री तक तापमान बढ़ गया है। खजूर-अनार का उत्पादन 75% तक घट गया है।

पढ़िए पूरी रिपोर्ट…

क्यों काटे जा रहे हैं लाखों पेड़

बीकानेर, फलोदी, जैसलमेर व बाड़मेर जिलों में सोलर प्लांट के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ काटे जा चुके हैं। इनमें अधिकांश खेजड़ी के पेड़ थे। इसका स्थानीय लोग विरोध भी कर रहे हैं।

बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉक्टर अनिल छंगाणी ने बताते हैं- प्रदेश भर में 26,452 मेगावाट बिजली का उत्पादन सोलर से हो रहा है।

लगभग 1.32 लाख एकड़ जमीन पर प्लांट लगे हैं। एक मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए 4 से 5 एकड़ भूमि पर सोलर प्लेट लगती है। राजस्थान में प्रति एकड़ 15 से 20 पेड़ और दस फीट तक लंबी 25 से 30 झाड़ियां हैं। ऐसे
में सोलर प्लांट के लिए करीब 26 लाख पेड़ व 40 लाख झाड़ियां काटी गई हैं।

प्रदेश की रिन्युएबल एनर्जी पॉलिसी के अनुसार, 2030 तक सोलर से 65 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य है यानि 38,548 मेगावाट क्षमता का प्लांट लगेगा। इसके लिए 92 लाख एकड़ जमीन चाहिए होगी। ऐसे में पांच साल में 38.54 लाख पेड़ और काटे जाएंगे।
कहां, कितना बड़ा प्लांट

फलोदी : 13 हजार 800 एकड़ में सबसे बड़ा भड़ला सोलर प्लांट जो 2245 मेगावाट का है।

जैसलमेर : 3 हजार 500 एकड़ भूमि पर 1300

मेगावाट का रिन्यू सोलर प्रोजेक्ट, एनटीपीसी का 296 मेगावाट का फतेहगढ़ सोलर प्लांट, भीमासर में अडाणी का 250 मेगावाट प्लांट।

बीकानेर : गजनेर में हिंदूजा रिन्यूवल का 25

मेगावाट, कोलायत में 550 मेगावाट, नोखा, नोखा दहिया, नोखा तहसील में अलग-अलग स्थानों पर 500 मेगावाट तथा नूरसर, छतरगढ़, जालवाली आदि क्षेत्रों में 200 मेगावाट के सौर ऊर्जा प्लांट लगे हैं।

प्लांट के लिए बेच दी जमीन, अब रोजगार की तलाश में छोड़ रहे गांव

बीकानेर के नूरसर गांव में ग्रामीणों ने 90 प्रतिशत जमीन सोलर प्लांट के लिए कंपनी को बेच दी। गांव में हर 500 मीटर से एक किलोमीटर की दूरी पर मुख्य सड़क के एक किनारे सोलर प्लांट हैं। वहां एक पेड़ भी नजर नहीं आता, वहीं दूसरी ओर पेड़ व झाड़ियां हैं।
सोलर प्लांट के लिए हर सप्ताह 4 करोड़ लीटर पानी खर्च

चारों जिलों में सोलर प्लांट को ठंडा व साफ रखने के लिए एक सप्ताह में चार करोड़ लीटर पानी खर्च किया जाता है। इतना पानी तीन लाख लोगों की प्यास बुझा सकता है। प्लांट प्राकृतिक जल स्रोतों से दोहन कर रहे हैं। ऐसे में क्षेत्र का जल दोहन भी बढ़ रहा हैं। सैटेलाइट इमेज के जरिए देखें तो 2014 से 2022 के बीच नाड़ी कुओं से काफी संख्या में दोहन हुआ है। वहीं सोलर प्लांट की वजह से इस क्षेत्रों में पांच डिग्री तापमान भी बढ़ा है।
पेड़-पौधों में नहीं बन रहे फल-बीज

एग्रोनोमिस्ट और हार्टिकल्चरिस्ट संतोष बोहरा कहते हैं- फलोदी से देचू बेल्ट में अनार व खजूर के कई फॉर्म हैं। यहां सोलर हब के लिए लाखों पेड़ काटने के कारण पक्षी-तितलियां, कीट-पतंगें खत्म हो गए हैं। अब किसानों को आर्टिफिशियल पॉलिनेशन (कृत्रिम परागण) करना पड़ रहा है। आर्टिफिशियल पॉलिनेशन में तितली या पक्षियों द्वारा नहीं बल्कि मनुष्य पराग को एक फूल से दूसरे फूल तक पहुंचाता है।