शीतला अष्टमी का पर्व बुधवार, 15 मार्च 2023 यानी आज मनाया जा रहा है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से शीतला अष्टमी को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. शीतला अष्टमी को बसोड़ा भी कहते हैं. चैत्र के महीने में या गर्मियों की शुरुआत में बीमारियां ज्यादा होती हैं. इसलिए इस माह में शीतला माता की पूजा की जाती है. शीतला माता का रूप बेहद खास है, उनके एक हाथ में झाड़ू है, एक हाथ में पानी का कलश है, एक हाथ में नीम के पत्ते हैं और एक हाथ से वो आशीर्वाद दें रही हैं. कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है.
शीतला अष्टमी होली के आठ दिन बाद मनाई जाती है. इसे गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में काफी धूमधाम से मनाया जाता है. शीतला अष्टमी के दिन मां शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है. लोग शीतला अष्टमी के एक दिन पहले ही भोग तैयार कर लेते हैं, और इसे दूसरे दिन माता को चढ़ाया जाता है.
*शीतला अष्टमी का शुभ मुहूर्त*
शीतला अष्टमी बुधवार, मार्च 15, 2023 यानी आज
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त – सुबह 06 बजकर 31 मिनट से शाम 06 बजकर 29 मिनट तक
अवधि – 11 घण्टे 58 मिनट्स
अष्टमी तिथि प्रारंभ – 14 मार्च 2023 को रात 08 बजकर 22 मिनट से शुरू
अष्टमी तिथि समाप्त – 15 मार्च 2023 को शाम 06 बजकर 45 मिनट तक
*माता शीतला को क्यों चढ़ता है बासी भोग ?*
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है. एक दिन पहले सारा भोजन बनाकर तैयार कर लिया जाता है और फिर दूसरे दिन प्रात: काल उठकर घर की महिलाएं शीतला माता की पूजा करने के बाद मां को बासी भोजन का भोग लगाती है. घर के सभी सदस्य भी बासी भोजन ही करते हैं. हिन्दू मान्यता के अनुसार, शीतला माता की पूजा के दिन ताजा खाना और गर्म पानी से स्नान करना वर्जित माना जाता है.
*शीतला अष्टमी पूजन विधि*
प्रात: काल उठकर पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करें. साफ- सुथरे वस्त्र धारण करें. पूजा करने के लिए दो थाली सजाएं. एक थाली में दही, रोटी, पुआ, बाजरा, नमक पारे, मठरी और सप्तमी के दिन बने मीठे चावल रखें. दूसरी थाली में आटे का दीपक बनाकर रखें, रोली, वस्त्र अक्षत, सिक्का और मेंहदी रखें, और ठंडे पानी से भरा लोटा रखें. घर के मंदिर में शीतला माता की पूजा करके बिना दीपक जलाए रख दें और थाली में रखा भोग चढ़ाएं.
नीम के पेड़ पर जल चढ़ाएं. दोपहर के वक्त शीतला माता के मंदिर में जाकर फिर से पूजा अर्चना करें. माता को जल चढ़ाएं. रोली, हल्दी का टीका करें. मां को मेंहदी लगाएं, और नए वस्त्र अर्पित करें. उसके बाद बासी खाने का भोग लगाकर, कपूर जलाकर आरती करें. संभव हो तो होलिका दहन वाली जगह पर जाकर भी पूजा करें. पूजा सामग्री बचने पर किसी गाय या ब्राह्मण को दान दें.
*शीतला सप्तमी कथा*
एक गावं में बूढ़ी माता रहती थी. एक दिन पूरे गांव में आग लग गई. इस आग में पूरा गांव जलकर खाक हो गया लेकिन बूढ़ी माता का घर बच गया. यह देखकर सभी दंग रह गए कि पूरे गांव में केवल एक बूढ़ी माता का घर कैसे बच गया. सभी बूढ़ी माता के पास आकर पूछने लगे तो उन्होंने बताया कि वह चैत्र कृष्ण अष्टमी को व्रत रखती थीं. शीतला माता की पूजा करती थीं. बासी ठंडी रोटी खाती थीं. इस दिन चूल्हा भी नहीं जलाती थी. यही वजह है कि शीतला माता की कृपा से उनका घर बच गया और बाकी गांव के सभी घर जलकर खाक हो गए. माता के इस चमत्कार को देख पूरा गांव माता शीतला की पूजा करने लगा और तब से शीतला अष्टमी का व्रत रखने की परंपरा शुरू हो गई.