नापासर टाइम्स। वैशाख माह की संकष्टी चतुर्थी 09 अप्रैल दिन रविवार को है. इसे विकट संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं. इस दिन व्रत रखकर गणेश जी की पूजा करते हैं और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं. पूजा के समय संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा सुनते हैं, जिसमें बताया गया है कि गणेश जी को किस प्रकार देवताओं के संकट को दूर करने के लिए चुना गया. उनको प्रथम पूज्य का वरदान भी प्राप्त हुआ. केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से जानते हैं संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा.
*संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा*
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार इंद्र समेत सभी देवता गण भगवान शिव के पास अपने संकटों को दूर करने की प्रार्थना लेकर पहुंचे. तब भगवान शिव के दोनों पुत्र कार्तिकेय और गणेश जी वहीं मौजूद थे. तब भगवान शिव ने उन दोनों से पूछा कि कौन सबसे पहले देवताओं की विपदा को दूर कर सकता है, तो दोनों ने ही कहा कि वे सक्षम हैं. तब भगवान शिव को एक युक्ति सुझी. उन्होंने अपने दोनों पुत्रों से कहा कि इसके लिए पहले परीक्षा देनी होगी.
शिव जी ने कहा कि जो सबसे पहले इस पृथ्वी की परिक्रमा करके हमारे पास आ जाएगा, उसे ही देवताओं का संकट दूर करने के लिए भेजा जाएगा. परीक्षा की बात सुनकर भगवान कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर सवार हो गए और पिता से आज्ञा लेकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल पड़े. उधर गणेश जी बड़े ही सोच में पड़ गए कि उनका वाहन मूषक है. इससे पूरी पृथ्वी की परिक्रमा संभव नहीं है.
तब गणेश जी के मन में एक विचार आया. वे झट से अपने स्थान से उठे. फिर वे हाथ जोड़कर अपने पिता भगवान शिव और माता पार्वती की सात बार परिक्रमा किए. उसके बाद अपने स्थान पर आकर बैठ गए. सभी देवी देवता यह देखकर आश्चर्य में पड़ गए. कुछ समय बाद कार्तिकेय जी पृथ्वी की परिक्रमा करके कैलाश पर आए और स्वयं को विजेता घोषित करने लगे.
इस बीच शिव जी ने गणेश जी से पूछा कि तुमने पृथ्वी की जगह अपने माता-पिता की परिक्रमा क्यों की? इस पर गणेश जी ने कहा कि माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक बसता है. छोटे पुत्र का उत्तर सुनकर शिवजी बड़े प्रसन्न हुए. उन्होंने गणेश जी को देवताओं का संकट दूर करने के लिए भेजा.
महादेव ने गणेश जी को वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति चतुर्थी के दिन तुम्हारी पूजा करके रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा, उसके सभी पाप मिट जाएंगे. विपदाएं दूर होंगी और मनोकामनाएं पूरी होंगी. जीवन में सुख और समृद्धि में वृद्धि होगी.
इस व्रत कथा को पढ़ने के बाद गणेश जी से प्रार्थना करें कि आप हमारे संकटों को दूर करके जीवन में सुख और समृद्धि दें.