Rajasthan: नागौर के भाइयों ने भरा एक करोड़ 15 लाख का मायरा, 28 तोला सोना, 21 लाख नगदी और ये दिया

    नापासर टाईम्स। नागौर जिले के खींवसर विधानसभा क्षेत्र के धारणावास गांव में एक भाई ने अपने भांजे की शादी में एक करोड़ 15 लाख का मायरा भरा। इस दौरान 28 तोला सोना, 21 लाख नगदी, प्लॉट और कार समेत अन्य सामान दिया गया।

    दरअसल, नागौर जिले के धारणा वास गांव के रहने वाले रामकरण मुंडेल और उनकी धर्मपत्नी मंजू देवी के बेटे जितेंद्र मुडेल की सोमवार को शादी हुई। जितेंद्र की शादी में मामा हनुमान राम सियाग ने 1 करोड़ 15 लाख का मायरा भरा। जिसमे जोधपुर के 80 फीट रोड पर 75 लाख का प्लॉट, 28 तोला सोना, 21 लाख नगदी और 15 लाख की नई चमचमाती कार भी शामिल है।

    मायरा भरने के लिए चटालिया गांव से मामा हनुमाराम 600 गाड़ियों का काफिला लेकर धारणावास गांव पहुंचा तो हर कोई अचंभित रह गया। राजस्थानी परंपरा के अनुसार जितेंद्र के मामा ने अपनी बहन को गोटेदार चुनरी ओढ़ाकर मायरे की शुरुआत की।

    बता दें कि चटालिया गांव के रहने वाले सियाग परिवार के पुनाराम सियाग के तीन बेटियां और 1 बेटा है। बेटे जितेंद्र का विवाह सोमवार को पूजा के साथ हुआ। पूजा के पिता राजीव सारण खेती करते हैं और मां चाहती देवी ग्रहणी हैं। वही, जितेंद्र के परिवार के अन्य लोग टीचर, एडवोकेट, लेक्चर, और सेना में अपनी सेवाओं दे रहे हैं। जितेंद्र के मामा जोधपुर के कजनाऊ गांव में सरपंच हैं।

    *क्या होता है मायरा‌?*

    दरअसल राजस्थान में मायरा की रस्म अलग ही महत्त्व रखती है. मायरा यानि भात, इस रस्म में मामा अपनी भांजी या भांजे के लिए गहने कैश कपड़े जैसी कई चीजों को चढ़ाता है, जिसे मायरा कहा जाता है. हर कोई अपनी हैसियत से मायरा भरता है, लेकिन नागौर में भरे जाने वाला मायरा अलग ही पहचान रखता है. नागौर में पिछले 5 दिनों में तीन अलग अलग शादियों में 13 करोड़ से ज्यादा का मायरा भरा गया.

    राजस्थान में मायरे की रस्म मामा की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ होता है. हालांकि पौराणिक मान्यताओं के हिसाब से भाई अपनी बहन को उसके बच्चों की शादी में मायरे के जरिये आर्थिक मदद करता था, लेकिन कई लोगों का मानना है कि यह आज दिखावे का एक नया तरीका बनता जा रहा है. जिसके चलते कई आर्थिक रूप से कमजोर ननिहाल पक्ष पर भी सामाजिक दबाव भी बनता है. ऐसे में दिखावे के मायरे कि बजाए अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार ही मायरा भरा जाना चाहिए.

    सामाजिक तौर पर माना जाता है कि ज्यादातर महिलाएं अपने पिता की संपत्ति पर दावा नहीं करती है. ऐसे में भाइयों द्वारा मायरा के जरिये भी बहनों को एक भेंट दी जाती है. साथ ही इस तरह रस्मों से शादी के कई सालों बाद भी रिश्ता बरकरा रहता है और अगली पीढ़ी तक भी निभाया जाता है. मायरों को लेकर आज के दौर में समाज में अलग-अलग विचार है. हालांकि इसे आज भी रस्म के तौर पर बड़े ही भव्य रूप से मनाया जाता है.