नापासर टाइम्स। राजस्थान में कांग्रेस हारे हुए प्रत्याशियों पर भी दांव लगाएगी. पार्टी ने तय किया है कि उनका नेता जो भले ही दो तीन चुनाव हार चुका है लेकिन अगर इस बार उसके प्रति जनता में सहानुभूति है तो उसे टिकट देने में पार्टी को कोई एतराज नहीं है. राजस्थान कांग्रेस में ऐसे एक या दो नहीं कई नेता हैं जो पिछले दो तीन चुनाव से हार रहे हैं. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि इनमें से कौन टिकट की बाजी मार ले जाता है.
नईमुददीन गुडडू कोटा की लाडपुरा सीट से लगातार दो बार विधानसभा चुनाव हार चुके हैं. तीसरी बार पार्टी ने 2018 में उनकी पत्नी गुलनाज बानो को उम्मीदवार बनाया. मगर वो भी चुनाव हार गअीं. अब गुडडू फिर से टिकट हासिल करने में जुटे हैं. वर्तमान में उनका बेटा सरपंच है और वो खुद लाडपुरा के प्रधान हैं. इसलिए मजबूती से दावेदारी कर पार्टी से एक मौका और देने की गुहार कर रहे हैं.
*बगावत का डर*
गुडडू जैसे एक नहीं कांग्रेस पार्टी में अनेक नेता हैं जिनकी किस्मत का ताला खुलने का नाम ही नहीं ले रही. लगातार दो बार चुनाव हारने वालों के टिकट अगर काटे गए तो दो दर्जन से ज्यादा नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर तलवार लटक जाएगी. कई पूर्व मंत्री और विधायक भी टिकट पाने से वंचित रह सकते हैं. अगर ऐसा हुआ को उन नेताओं के बागी होकर निर्दलीय मैदान में ताल ठोकने का कांग्रेस पार्टी को डर है.कांग्रेस पार्टी ने हार कर भी अपने क्षेत्र में सक्रिय रहे उन नेताओं की जीत की खूब संभावनाएं टटोली हैं जो इस बार सर्वे में आगे रहे.
*दो बार चुनाव हारने वालों में*
-जयपुर के मालवीय नगर से डॉ. अर्चना शर्मा
– लूणकरणसर से वीरेंद्र बेनीवाल
– श्रीडूंगरगढ़ से मंगलाराम गोदारा
– पुष्कर से नसीम अख्तर
-जैतारण से दिलीप चौधरी
– मनोहर थाना से कैलाश मीणा
– डीग से मदनलाल वर्मा
-सलूंबर से रघुवीर मीणा
– गोगुंदा से मांगीलाल गरासिया
– रानीवाड़ा से रतन देवासी
– चौमूं से भगवान सहाय सैनी
– कुंभलगढ़ से गणेश परमार
-शाहपुरा (भीलवाड़ा) से महावीर मोची
– आहोर से सेवाराम पटेल
– घाटोल से नानालाल निनामा
-मकराना से जाकिर हुसैन गैसावत
-गढ़ी से कांता भील
-नागौर और खींवसर से हरेंद्र मिर्धा
– सागवाड़ा से सुरेन्द्र बामणिया
– मावली से पुष्कर डांगी
-संगरिया से शबनम गोदारा
– लाडपुरा से नईमुद्दीन गुड्डू
-पीलीबंगा से विनोद गोठवाल
– विद्याधर नगर से विक्रम सिंह शेखावत
– तिजारा से दुरु मियां
– बड़ी सादड़ी से प्रकाश चौधरी
-चित्तौड़गढ़ से सुरेंद्र जाड़ावत
*टिकट का पैमाना सिर्फ जीत*
कांग्रेस नेताओं का साफ कहना है इस बार पार्टी ने टिकट के लिए जो मापदंड बनाए हैं उनमें चुनाव चाहें दो बार हारा हुआ हो,,या फिर तीन बार,,,पार्टी की सेहत पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ता. पार्टी के लिए इस बार के चुनाव में अगर वो नेता जीतता दिख रहा है तो पार्टी को उसे फिर से टिकट देने में कोई परेशानी नहीं है.
*बगावत का डर*
अगर लगातार हारे हुए प्रत्याशियों को कांग्रेस ने टिकट से नवाजा तो इस पर बवाल भी मचना तय है. पार्टी के सामने बगावत से निपटने की चुनौती होगी. साथ ही उन दावेदारों की उम्मीदें भी टूटेंगी जो टिकट तय मानकर चल रहे थे. देखना है कांग्रेस का नया विनिंग फॉर्मूला क्या पराजय का बार बार स्वाद चख चुके नेताओं को जीत की राह पर ले जा पाएगा.