*पुण्य देने वाला पखवाड़ा:वैशाख मास का शुक्ल पक्ष 21 अप्रैल से 5 मई तक, इसमें अक्षय तृतीया, गंगा सप्तमी और बुद्ध पूर्णिमा जैसे बड़े पर्व*

नापासर टाइम्स। आज वैशाख महीने की अमावस्या है। इस पवित्र महीने के शुरुआती 15 दिन बीत गए। अब अगले 15 दिन यानी वैशाख महीने का शुक्ल पक्ष शुरू होगा। ग्रंथों में कहा गया है कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में जाने-अनजाने दिए गए छोटे से दान का भी बड़ा पुण्य मिलता है, इसलिए इन दिनों को बहुत शुभ माना गया है।

वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष में खासतौर से अन्न, जल, कपड़े, जूते-चप्पल और छाता दान किया जाता है। वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष में आने वाले तीज-त्योहारों पर किए जाने वाले व्रत और स्नान-दान का भी कई गुना शुभ फल मिलता है।

*वैशाख शुक्ल पक्ष के तीज-त्योहार और पर्व*
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*अक्षय तृतीया (शनिवार, 22 अप्रैल):*

पुराणों में इसे युगादि तिथि कहा गया है। यानी इस दिन से सतयुग की शुरुआत मानी जाती है। महाभारत और नारद संहिता में इस दिन को बहुत ही खास माना गया है। ज्योतिष में इसे अबूझ मुहूर्त कहा गया है। अक्षय तृतीया पर किए गए किसी भी तरह के दान को पुण्य कभी खत्म नहीं होता। इस दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाती है।

*शंकराचार्य जयंती (मंगलवार, 25 अप्रैल):*

वैशाख महीने की पूर्णा तिथि यानी शुक्ल पक्ष की पंचमी पर दक्षिण भारत में जगतगुरु आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ था। जिन्हें शिवजी का रूप माना जाता है। शंकराचार्य ने कम उम्र में ही वेदों की व्याख्या कर कई ग्रंथ लिखे। इन्होंने ही हिंदू धर्म की अखंडता के लिए देश में चारधाम बनाएं। जीवन के आखिरी दिनों में इन्होंने केदारनाथ के नजदीक समाधी ली। जिसे आज जोशीमठ कहा जाता है।

*गंगा सप्तमी ( गुरुवार, 27 अप्रैल):*

पद्म पुराण का कहना है कि शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगाजी का पूजन करना चाहिए, क्योंकि इसी तिथि पर महर्षि जह्नु ने अपने दाहिने कान से गंगाजी को बाहर निकाला था। इसके अलावा कुछ विद्वानों का कहना है कि इसी तिथि पर भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। इसलिए सप्तमी से तीन दिन तक उनकी मूर्ति की पूजा करनी चाहिए। ये तब खास माना जाता है, जब पुष्य नक्षत्र हो।

*अपराजिता अष्टमी (शुक्रवार, 28 अप्रैल):*

वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को देवी दुर्गा के अपराजिता रूप की पूजा की जाती है। इस रूप में देवी की मूर्ति को कपूर और जटामासी वाले जल से नहलाना चाहिए। इस दिन व्रत करने वाले को पानी में थोड़ा सा आम का रस डालकर नहाना चाहिए।

*जानकी नवमी (शनिवार, 29 अप्रैल):*

वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष में देवी सीता की पूजा करने का विधान पुराणों में बताया गया है। मान्यता है कि देवी सीता इसी तिथि पर प्रकट हुई थीं। इसके बाद राजा जनक को मिलीं। जब वो यज्ञ के लिए भूमि जोत रहे थे।

*मोहिनी एकादशी (सोमवार, 1 मई):*

वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं। इस व्रत से जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं। हर तरह की मनोकामना पूरी होती है। पुराणों के मुताबिक समुद्र मंथन से निकले अमृत को राक्षसों से बचाने के लिए इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लिया था।

*नृसिंह प्राकट्योत्सव (गुरुवार, 4 मई):*

पद्म पुराण के मुताबिक वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी पर भगवान नरसिंह प्रकट हुए थे। ये भगवान विष्णु का चौथा अवतार था। इनका आधा शरीर सिंह और आधा इंसान का था। इन्होंने राक्षस हिरण्यकश्यप को मारकर भक्त प्रहलाद को बचाया था

*वैशाख पूर्णिमा (शुक्रवार, 5 मई):*

वैशाख महीने की पूर्णिमा पर ब्रह्मा जी ने तिल का निर्माण किया था। इसलिए उस दिन दोनों तरह के तिल यानी सफेद और काले तिल वाले जल से नहाना चाहिए। इस तिथि पर अग्नि में तिल की आहुति देना चाहिए। साथ ही इस पूर्णिमा पर तिल और शहद से भरा बर्तन दान दें। ऐसा करने से हर तरह के पाप, परेशानियां और दोष खत्म हो जाते हैं।