नापासर टाइम्स।हर साल 24 एकादशियां होती हैं। जब अधिक मास यानी पुरुषोत्तम मास है, तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। इन बढ़ी हुई एकादशी में दूसरी 12 अगस्त, शनिवार को है। इस पवित्र महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को परम एकादशी कहा जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति हर प्रकार की तप-तपस्या, यज्ञ आदि से मिलने वाले फल के समान पुण्य प्राप्त करता है। ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पुरुषोत्तमी एकादशी के व्रत की कथा सुनाकर इसके माहात्म्य से अवगत करवाया था।
इस एकादशी व्रत को करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और सुख-समृद्धि की भी मिलती है। इस दिन अपने पूर्वजों का ध्यान करने का विशेष महत्व बताया गया है।
*व्रत विधि*
जो लोग इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि को एक समय आहार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि आहार सात्विक हो।
एकादशी के दिन श्री विष्णु का ध्यान करके संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल एवं पंचामृत से विष्णुजी की पूजा करें।
व्रत की सिद्धि के लिए घी का अखंड दीपक जलाएं। शास्त्रों के अनुसार एकादशी के दिन व्रत करने से स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्न दान और गौ दान से अधिक पुण्य मिलता है।
*व्रत कथा*
पौराणिक कथा के अनुसार काम्पिल्य नगर में सुमेधा नामक एक निर्धन ब्राह्मण निवास करता था। उसकी पत्नी का नाम पवित्रा था। दोनों लोगों की सेवा के लिए तैयार रहते थे। एक दिन कौण्डिन्य ऋषि उनके घर पर पधारे। दोनों ने उनकी अच्छे ढंग से सेवा की।
महर्षि ने दोनों को परम एकादशी व्रत रखने की सलाह दी। दोनों ने महर्षि के बताए अनुसार व्रत रखा और विधि पूर्वक पारण किया। अगले दिन एक राजकुमार घोड़े पर चढ़कर आया और उसने सुमेधा को हर प्रकार की सुख सुविधाएं प्रदान कीं। इस प्रकार से दोनों के कष्ट दूर हो गए।
*पुरुषोत्तम महीने की एकादशी का महत्व:इस तिथि पर व्रत के साथ ही सूर्य और पीपल पूजन करने से तृप्त हो जाते हैं पितर*
अधिक मास में भगवान विष्णु की पूजा आराधना के साथ ही पितरों की भी पूजा करने का विधान है। पुराणों के मुताबिक अधिक मास की एकादशी पर किया गया श्राद्ध और दान पितरों को संतुष्ट कर देता है।
पितरों को संतुष्ट करने के लिए अधिक मास के कृष्ण पक्ष को भी महत्वपूर्ण माना गया है। इस दौरान एकादशी पर सूर्य को अर्घ्य देने और पीपल की पूजा करने से भी पितर तृप्त हो जाते हैं। इस बात का जिक्र ग्रंथों में भी किया गया है।
*सूर्य पूजा*
पुरुषोत्तम महीने में सूर्य को दिया गया अर्घ्य पितरों को तृप्त करता है। सूर्य, भगवान विष्णु का ही अंश है। इसलिए इन्हें सूर्य नारायण कहा गया है। ये ही प्रत्यक्ष देवता हैं। इसलिए परम एकादशी पर उगते हुए सूरज को जल चढ़ाने के बाद पितरों की तृप्ति के लिए प्रार्थना करना चाहिए। ऐसा करने से पितर संतुष्ट होते हैं।
*पीपल पूजा*
इस पवित्र महीने की एकादशी पर पीपल की पूजा का भी खास महत्व है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर पानी में गंगाजल, कच्चा दूध और तिल मिलाकर पीपल को चढ़ाना चाहिए। ऐसा करने से पितृ तृप्त हो जाते हैं। साथ ही भगवान विष्णु की कृपा मिलती है।
*ऐसे करें पितरों के लिए विशेष पूजा*
एकादशी तिथि पर श्राद्ध और तर्पण करने का विधान ग्रंथों में बताया गया है। इसके लिए एक लोटे में जल भरें, जल में फूल और तिल मिलाएं। इसके बाद ये जल पितरों को अर्पित करें। जल अर्पित करने के लिए जल हथेली में लेकर अंगूठे की ओर से चढ़ाएं। कंडा जलाकर उस पर गुड़-घी डालकर धूप अर्पित करें। पितरों का ध्यान करें।
*वायु रूप में आते हैं पितर*
माना जाता है कि पितर स्वर्ग लोक, यम लोक, पितृ लोक, देव लोक, चंद्र लोक और अन्य लोकों से सूक्ष्म वायु शरीर धारण कर धरती पर आते हैं। वे देखते हैं कि उनका श्राद्ध प्रेम से किया जा रहा है या नहीं। अच्छे कर्म दिखने पर पितृ अपने वंशजों पर कृपा करते हैं।
पितरों के नाम से तर्पण, पूजा, ब्रह्मभोज व दान करना पुण्यकारी होता है। इसलिए पितरों को प्रसन्न करने के लिए तर्पण किया जाता है और इन दिनों में दान और ब्रह्म भोज भी कराया जाता है।