नापासर टाइम्स। दो दिन बाद यानि 29 जुलाई, शनिवार को अधिक मास की पहली एकादशी रहेगी। इसे पद्मिनी एकादशी कहा जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु के साथ पीपल और तुलसी के पौधे की पूजा की भी परंपरा है। ऐसा करने से इस व्रत का पूरा फल मिलता है। पीपल में भगवान विष्णु का वास माना जाता है। वहीं, तुलसी को लक्ष्मीजी का रूप माना गया है।
19 साल बाद ज्येष्ठा नक्षत्र और ब्रह्म योग में ये व्रत किया जाएगा। इससे पहले 2004 में ऐसा हुआ था। चातुर्मास के चलते सावन और अधिक मास का संयोग होने से भगवान विष्णु की पूजा और व्रत का पुण्य फल और बढ़ जाएगा।
पद्मिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के अवतारों की विशेष पूजा करने की भी परंपरा है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु के लिए व्रत-उपवास किए जाते हैं। इस व्रत में पीपल की पूजा सुबह जल्दी करने का विधान है। साथ ही सुबह और शाम दोनों समय तुलसी की पूजा की जाती है और दीपक लगाया जाता है।
*पीपल पूजा:*
अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी पर पीपल की पूजा का भी खास महत्व है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर पानी में गंगाजल, कच्चा दूध और तिल मिलाकर पीपल को चढ़ाना चाहिए। ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा मिलती है और पितृ भी तृप्त हो जाते हैं।
*तुलसी पूजा:*
दूध और पानी से भगवान शालग्राम का अभिषेक करें और पूजन सामग्री चढ़ाएं। अभिषेक किए जल में से थोड़ा सा खुद पीएं और बाकी तुलसी में चढ़ा दें। इसके बाद हल्दी, चंदन, कुमकुम, अक्षत, फूल और अन्य पूजन सामग्रियों से तुलसी माता की पूजा करनी चाहिए।
*अन्न और कपड़ों के दान से महायज्ञ का फल*
ग्रंथों में बताया है कि इस एकादशी पर पर दान करने से गरीबी से मुक्ति मिलती है। ये भी माना जाता है कि जितना पुण्य हर तरह के दान और कई तीर्थों के दर्शन से मिलता है, उसके बराबर पुण्य पद्मिनी एकादशी पर अन्न और कपड़ों के दान करने से मिल जाता है, इसलिए इस दिन तुलसी और पीपल को जल चढ़ाना चाहिए। साथ ही जरुरतमंद लोगों की मदद करनी चाहिए। इस दिन गायों की सेवा करने से भी व्रत का पुण्य और बढ़ जाता है।