नापासर टाइम्स। आज मंगलवार 04 जुलाई को सावन माह के पहले दिन पहला मंगला गौरी व्रत रखा जाएगा. मंगला गौरी व्रत को कुंवारी कन्याएं और विवाहित महिलाएं दोनों ही करती हैं. इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन सुखमय होता है और शीघ्र की विवाह के योग बनते हैं.
*मंगला गौरी व्रत का महत्व*
मंगला गौरी का व्रत सावन में पड़ने वाले प्रत्येक मंगलवार के दिन किया जाता है. यह देवी पार्वती को समर्पित व्रत है, जिसमें मां पार्वती के स्वरूप मां मंगला गौरी की पूजा की जाती है. मंगला गौरी का व्रत करने से पति की आयु लंबी होती है. वहीं संतान सुख की प्राप्ति के लिए निसंतान स्त्रियां भी इस व्रत को कर सकती हैं. मान्यता है कि यदि कुंवारी कन्या मंगला गौरी का व्रत करती हैं तो विवाह में आ रही बाधाएं दूर हो जाती है.
मंगला गौरी के व्रत से मां अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं और उनकी झोली खुशियों से भर देती हैं. लेकिन मंगला गौरी व्रत को लेकर कुछ नियम बताए गए हैं, जिनका पालन करना जरूरी होता है. इन नियमों का पालन करते हुए मंगला गौरी व्रत रखने से श्रेष्ठ फलों की प्राप्ति होती है.
*मंगला गौरी व्रत के जरूरी नियम*
मंगला गौरी व्रत के दिन क्रोध ना करें और किसी को अपशब्द भी नहीं कहें.
व्रत के दौरान साफ-सफाई और शुद्धता का विशेष ध्यान रखें.
आप हर साल सावन माह में इस व्रत को कर सकते हैं. लेकिन अगर आप इस व्रत को किसी कारण छोड़ना चाहते हैं तो सावन महीने के अंतिम मंगलवार को इस व्रत का उद्यापन जरूर करें. उद्यापन के बिना व्रत पूर्ण नहीं होता है.
इस बात का भी ध्यान रखें कि उद्यापन कम से कम पांच तक मंगला गौरी व्रत रखने के बाद ही करें.
मंगला गौरी व्रत में पूजन सामग्रियों जैसे चूड़ी, सुपारी, पान, लौंग, फूल आदि की संख्या 16 में रहनी चाहिए.
यदि आप अकेले 16 की संख्या में सामग्री अर्पित नहीं कर सकते हैं तो 16 महिलाएं एक साथ बैठकर पूजा कर सकती हैं. सभी 16 महिलाएं एक-एक कर माता को सुहान के सामान, फल, आटे के लड्डू आदि अर्पित करते रहें.