सावन में विष्णु पूजा करने का भी विधान:12 को श्रावण बुधवार, 13 को कामिका एकादशी और 14 जुलाई को सावन द्वादशी पर हरि पूजन से मिलेगा आरोग्य

नापासर टाइम्स। सावन में शिवजी के अलावा भगवान विष्णु की पूजा करने का भी विधान ग्रंथों में बताया गया है। श्रावण मास में की जाने वाली श्रीहरि विष्णु की पूजा अभीष्ट मनोरथ और आरोग्य देने वाली होती है। इस बात का जिक्र महाभारत सहित भविष्य और शिव पुराण में किया गया है। सावन में भगवान विष्णु की पूजा करने से पांच यज्ञों का पुण्य मिल जाता है।

इसके लिए 12 जुलाई को सावन महीने का बुधवार, 13 को कामिका एकादशी और 14 तारीख को सावन महीने की द्वादशी तिथि रहेगी। इन तीन दिनों में भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने का विधान ग्रंथों में बताया गया है।

सावन महीने के इन तीनों में भगवान विष्णु की पूजा के लिए पुरी के ज्योतिषाचार्य और धर्मग्रंथों के जानकार डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि इन दिनों में भगवान विष्णु के लिए व्रत और पूजा करें…

*पूजन की विधि*

शंख में शुद्ध पानी, गंगाजल और कच्चा दूध (बिना गर्म किया) भरकर भगवान का अभिषेक करें। फिर भगवान का श्रंगार करें। इसके बाद अक्षत, चंदन, पारिजात के फूल और तुलसी पत्र मंजरी सहित चढ़ाएं। धूप-दीप लगाकर भगवान को नैवेद्य लगाएं। जो फल भगवान को प्रिय है, उन्हें भगवान की शय्या पर चढ़ाएं। फिर रात में उन फलों को खुद खाकर सो जाएं। अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और दक्षिण देकर प्रणाम करें।

*12 जुलाई, सावन का बुधवार*

शिव पुराण के मुताबिक सावन महीने के बुधवार को भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इस दिन दही युक्त अन्न से भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। ऐसा करने से सौभाग्य, आरोग्य और समृद्धि मिलती है। घर- परिवार में सुख बढ़ता है।

*13 जुलाई, सावन की एकादशी*

सावन महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कामिका एकादशी कहा जाता है। इस तिथि पर श्रीकृष्ण का अभिषेक करने के बाद मंजरी के साथ तुलसीदल अर्पित करें। भगवान विष्णु को पसंद फूल चढ़ाएं। नैवेद्य लगाएं। घी या तिल के तेल का दीपक जलाएं। जो दिन रात जलता रहे।

*14 जुलाई, सावन की द्वादशी तिथि*

महाभारत के आश्‍वमेधिक पर्व में कहा गया है कि श्रावण महीने में द्वादशी तिथि को उपवास करके जो श्रीधर नाम से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से पंचयज्ञों का पुण्य फल मिल जाता है। इस दिन शहद मिले दूध से भगवान का अभिषेक करना चाहिए। इसके बाद भगवान के पसंदीदा फूल और पूजन सामग्री से पूजा करनी चाहिए। दिनभर व्रत रखकर अगले दिन व्रत खोलना चाहिए।