नापासर टाइम्स। हमेशा पर्यटकों की चहल-पहल से चहकने वाला जूनागढ़ रविवार को भारी भीड़ के बावजूद शांत था। गमगीन था। पर्यटकों को आज इस ऐतिहासिक परिसर में एंट्री नहीं थी क्योंकि राजशाही की अंतिम निशानी का आज अंतिम दिन था। कभी डूंगरपुर की राजकुमारी और फिर बीकानेर की महारानी बनी सुशीला कुमारी को आज विदाई का दिन था। हर कोई गम में डूबा हुआ था लेकिन राजपरिवार का सदस्य अंतिम यात्रा के दौरान भी गाजे-बाजे के साथ ही गढ़ से बाहर निकला। जिस ड्योढ़ी में कभी सुशीला कुमारी दुल्हन बनकर आई थी, आज उसी परिसर से उनकी पार्थिव देह बाहर निकली।
महारानी साहिबा से “दाता” और “दादीसा” जैसे नाम से पहचान रखने वाली सुशीला कुमारी की अंतिम यात्रा तय समय के मुताबिक साढ़े ग्यारह बजे शुरू हुई और जूनागढ़ के आगे से होते हुए पब्लिक पार्क, जयपुर रोड होते हुए सागर पहुंची। राजाओं का राज तो अब नहीं रहा लेकिन सुशीला कुमारी बीकानेर की “राजमाता” के रूप में ही स्वीकार की गई। खुशी और गम में हमेशा बीकानेर के साथ खड़ी रहने वाली राजमाता को विदाई देने के लिए सड़क के दोनों और भीड़ थी। कोई उनकी राह में फूल बरसा रहा था तो कोई शीश झुकाकर अपने भाव प्रकट कर रहा था। अपने जीवन में भले ही उन्होंने राजमाता को नजदीक से नहीं देखा लेकिन सम्मान का भाव हर किसी के चेहरे पर था।
*सिद्धि कुमारी की तरफ निगाहें*
अंतिम यात्रा में शामिल होने आए लोगों की निगाहें सिर्फ सिद्धि कुमारी की तरफ थी। इस परिवार में और भी सदस्य है लेकिन सिद्धि कुमारी ही जनता के बीच रहती है। बीकानेर पूर्व की विधायक सिद्धि कुमारी अपनी दादीसा की सेवा में जुटी रहती थी। हर किसी को पता है कि दादीसा के जाने से सिद्धिकुमारी के जीवन में बड़ी रिक्तता आई है। सिद्धि कुमारी के चेहरे पर “दाता” के जाने का गम साफ नजर आया।
*सागर में अंतिम संस्कार*
बीकानेर राजपरिवार के सभी सदस्यों का अंतिम संस्कार सागर में ही होता है। “राजपरिवार की छतरियां” नाम से विख्यात इस स्थान पर राजपरिवार के सभी सदस्यों की अलग अलग समाधियां बनी हुई है। यहीं पर सुशीला कुमारी की एक छत्तरी अगले कुछ समय में बनकर तैयार हो जाएगी।
*ऊंट, बैंड और शाही सवारी*
अंतिम यात्रा में सबसे आगे राजस्थानी परिधानों से सजे ऊंट चल रहे थे, उनके पीछे राजपरिवार का स्पेशल बैंड मातमी धुन गा रहा था। वहीं पीछे शाही परिवार की पौशाक पहने लोग भी चल रहे थे। बड़ी संख्या में सामान्य लोग भी साथ साथ चल रहे थे। राजमाता के लिए विशेष पालकी कल ही तैयार की गई। जिसे फूलों से सजाया गया। इसी पालकी में उन्हें सागर तक ले जाया गया।