नापासर टाइम्स। आज तिथि, वार और नक्षत्र के संयोग में भगवान कार्तिकेय की पूजा और व्रत किया जाएगा। इसे स्कंद षष्ठी कहते हैं। ये भगवान कार्तिकेय को समर्पित त्योहारों में से एक है। स्कंद षष्ठी को कार्तिकेय षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कंद कुमार भी है। भगवान कार्तिकेय की पूजा का विशेष पर्व बुधवार को सिद्धि योग में मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी प्रकार के कष्टों का निवारण हो जाता है।
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र ने बताया कि स्कंद षष्ठी का व्रत करने वाले को लोभ, मोह, क्रोध और अहंकार से मुक्ति मिल जाती है। धन, यश और वैभव में वृद्धि होती है। व्यक्ति को शारीरिक कष्टों और रोगों से भी छुटकारा मिलता है।
*ऐसे करें पूजा*
स्कंद षष्ठी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर लें। इसके बाद भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा की स्थापना करें। इसके साथ ही शंकर-पार्वती और गणेश जी की मूर्ति भी स्थापित करें। इसके बाद कार्तिकेय के सामने कलश स्थापित करें। फिर सबसे पहले गणेश वंदना करें। मान्यता है इस दिन विशेष कार्य की सिद्धि के लिए पूजा फलदायी होती है।
*स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व*
भगवान मुरुगन ने सोरपद्मन और उसके भाईयों तारकासुर और सिंहमुख का षष्ठी को वध किया था। स्कन्द षष्ठी का यह दिन जीत का प्रतीक है। भगवान मुरुगन ने वेल या लांस नामक अपने हथियार का उपयोग करके सोरपद्मन का सिर काट दिया। कटे हुए सिर से दो पक्षी निकले- एक मोर जो कार्तिकेय का वाहन बन गया और एक मुर्गा जो उनके झंडे पर प्रतीक बन गया।
स्कंद षष्ठी व्रत की कथा के अनुसार च्यवन ऋषि की आंखों की रोशनी चली गई थी तो उन्होंने स्कंद कुमार की पूजा की थी। व्रत के प्रभाव से उनके आंखों की रोशनी वापस आ गई।