नापासर न्यूज। राजस्थान के नागौर सहित प्रदेश भर के लोग झोरड़ा आकर हरिरामजी महाराज के मंदिर आकर धोक लगाते हैं. झोरड़ा गांव नागौर जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. हरिरामजी लोक देवता की पूजा बगैर मूर्ति के की जाती है. राजस्थान का एकमात्र मंदिर जहां पर पूजा के लिए मूर्ति नहीं बल्कि हरिरमजी की लाठी वह खड़ाऊ की होती, साथ में बालाजी की पूजा होती है.
झोरड़ा गांव में लोकदेवता हरिरामजी के मंदिर में चारपाई, लाठी व खड़ाऊ की पूजा होती है. इसका कारण यह है कि हरिराम जी ने इन्ही वस्तुओं के सहारे अपना जीवन जिया और चमत्कार किये थे और सांप काटने के बाद झाड़ा लगाकर लोगों को ठीक किया था. मंदिर में हरिरामजी की चारपाई, लाठी व खड़ाऊ के साथ-साथ बालाजी की मूर्ति की पूजा करते हैं, इस मूर्ति को आसाम के पहाड़ों से लाए थे.
*सांप काटने पर लगाते थे झाड़ा*
हरिराम जी महाराज सर्पदंश के झाड़ा लगाते थे. जिस व्यक्ति को सांप के द्वारा काट लिया जाता था तो वह झाड़ा लगा कर उस व्यक्ति को ठीक कर देते थे तथा वह व्यक्ति एकदम स्वस्थ हो जाता था. सांपों के काटने पर लोग हरिराम के मंदिर आकर धोक लगाते हैं और जिस चारपाई पर हरिरामजी सोते थे, जिस लाठी को अपने साथ रखते और जिस खड़ाऊ को पहनते थे, इन सभी वस्तुओं की आज पूजा होती है. हरिराम बाबा के साधना स्थल से 5 मीटर की दूरी पर बने मंदिर में कोई मूर्ति की पूजा नहीं होती है. वहां पर हरिराम बाबा के चरणकमलों व बांबी की पूजा होती है. मान्यता पूरे राजस्थान में है.
*जानिए इतिहास*
हरिरामजी के वंशज हनुमान शर्मा ने बताया कि हरिरामजी का जन्म विक्रम संवत 1959 में आषाढ़ कृष्ण पक्ष तीज को हुआ 41 वर्ष की उम्र में विक्रम संवत 2000 में अपना उन्होंने देह त्याग दिया. मृत्यु होने से पहले हरिराम बाबा ने गांव वालों को इक्ट्ठा करके 7 दिन बाद में अपने प्राण त्याग दूंगा, उसके बाद हरिराम बाबा ने गांव वालों को बताने के बाद 7 दिन में अपना देह त्याग दिया.
*इस तरह शुरू हुई पूजा*
ग्रामीणों ने कहा कि हरिराम के प्राण त्यागने के बाद अंतिम संस्कार गांव के कुएं के उत्तर दिशा में करना चाहिए था, लेकिन ग्रामीण गांव में दो श्मशान नहीं बनाना चाहते थे तो पुराने श्मशान में ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया. इसके बाद पूरे गांव में जहरीले जीव पनपने लगे.इसके बाद ग्रामीणों के कहने पर उनकी चिता से भस्म कुएं के उत्तर दिशा में बांबी बनाकर रख दी तथा बाद में गांव से जहरीले जीव धीरे-धीरे गायब होने लग गए, तब से वहां पर रोज पूजा होने लगी।