नापासर टाइम्स। हिंदू धर्म में गणगौर के व्रत एवं व्रत का बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व है, जो कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है. अखंड सौभाग्य को पाने के लिए आज महिलाएं विशेष तौर पर माता गौरी और भगवान शिव की पूजा करती हैं. गणगौर व्रत को विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद जीवन जीने के लिए रखती हैं. साथ ही साथ इस व्रत को वो लड़कियां भी रखती हैं, जिनका विवाह नहीं हुआ है, ताकि वे माता पार्वती और भगवान शिव की कृपा से मनचाहा जीवनसाथी पा सकें. धार्मिक मान्यता के अनुसार इस पूजा का बहुत विशेष महत्व है. दरअसल, गण शब्द का अर्थ शिव होता है वहीं गौर का मतलब माता पार्वती होता है. इन दोनों शब्दों के मेल से ही गणगौर का नाम पड़ा है. आइए गणगौर की पूजा का शुभ मुहूर्त, विधि और महत्व जानते हैं.
*गणगौर पूजा शुभ मुहूर्त*
पंचांग के अनुसार गणगौर व्रत आज यानी की 24 मार्च को रखा जाएगा. चैत्र मास के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि कल यानी की 23 मार्च को शाम 06:20 बजे से ही प्रारंभ हो गई थी लेकिन इसका समापन आज यानी 24 मार्च 2023 को शाम 04:59 बजे होगा. उदया तिथि के अनुसार गणगौर व्रत और उसकी पूजा आज ही की जाएगी.
*गणगौर पूजा सामग्री*
एक लकड़ी का साफ पटरा, कलश, काली मिट्टी, होलिका की राख, गोबर या फिर मिट्टी के उपले, इत्र, रंग, शुद्ध और साफ़ घी, ताजे सुगन्धित फूल, आम की पत्ती, नारियल, सुपारी, गणगौर के कपड़े, पानी से भरा हुआ कलश, दीपक, गमले, कुमकुम, अक्षत, सुहाग की चीज़ें जैसे: मेहँदी, बिंदी, सिन्दूर, काजल, गेंहू और बांस की टोकरी, चुनरी, कौड़ी, सिक्के, घेवर, हलवा, सुहाग का सामान, चांदी की अंगुठी, पूड़ी आदि।
*गणगौर पूजा की पूजा विधि*
आज के दिन श्रृंगार करने का विशेष महत्व होता है, इसलिए महिलाएं और कन्याएं विशेष तौर पर श्रृंगार करके इस व्रत को विधि-विधान से करती हैं. गणगौर व्रत की पूजा के लिए सबसे पहले एक कलश में साफ जल भरकर, उस कलश को दूब और फूल से सजाया जाता है. इसके बाद मिट्टी से भगवान शिव और माता गौरी की मूर्ती बनाई जाती है या फिर बनी बनाई मूर्ति भी आप खरीद कर पूजा कर सकती हैं. गणगौर की प्रतिमाओं को स्थापित करने के बाद महिलाएं श्रृंगार से जुड़ा हर सामान माता पार्वती को अर्पित करती हैं. भगवान पर अर्पित करती हैं. इसके बाद माता गौरी की कृपा पाने के लिए व्रत की कथा पढ़ी जाती है. इस दिन जो सिंदूर माता गौरी को आर्पित किया जाता है उसी सिंदूर को विवाहित महिलाएं अपनी मांग में लगाती हैं. गणगौर व्रत एवं पूजा का प्रसाद सिर्फ महिलाएं ग्रहण करती है, इसे पुरुषों को नहीं दिया जाता है.