फ्रेंडशिप डे आज : श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता की सीख; मित्रता मुश्किल समय के लिए एक भरोसा है, इसलिए सही लोगों को मित्र बनाएं

नापासर टाइम्स। हर साल अगस्त के पहले रविवार को अंतरराष्ट्रीय फ्रेंडशिप डे मनाया जाता है। ये दिन मित्रता को समर्पित है। मित्रता मुश्किल समय में एक भरोसे की तरह है, इसलिए मित्रों के चयन में बहुत सावधानी रखनी चाहिए। मित्रता कैसी होनी चाहिए, ये श्रीराम और सुग्रीव से सीख सकते हैं।

रामायण में हनुमान जी ने श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता करवाई थी। पहली मुलाकात में श्रीराम ने सुग्रीव से कहा कि मैं मेरी पत्नी सीता को खोज में जंगल-जंगल भटक रहा हूं, लेकिन आप तो राजा हैं। आप जंगल में क्यों रह रहे हैं?

सुग्रीव ने श्रीराम से कहा कि मेरा एक बड़ा भाई है बालि। वही मेरा शत्रु हो गया है। पहले सब ठीक था, लेकिन एक दिन हमारे राज्य में एक राक्षस आ गया तो बालि उसे मारने गया। बालि बहुत बलवान है और वह शत्रु को जीवित नहीं छोड़ता है। बालि उस राक्षस को मारने के लिए गया तो मैं भी उनके पीछे-पीछे चला गया।

राक्षस भागते हुए एक गुफा में घुस गया, बालि भी उसके पीछे गुफा में चला गया। मैं गुफा के बाहर ही खड़ा था। कुछ समय बाद गुफा से बाहर रक्त बहने लगा, मुझे लगा कि राक्षस ने बालि को मार दिया। मैं डरकर वहां से अपने राज्य लौट आया।

राज्य के लोगों ने बालि की मरा समझकर मुझे राजा बना दिया, लेकिन कुछ दिन बाद बालि जीवित लौट आया। उसने मुझे राजा बना देखा तो वह मुझे ही शत्रु समझने लगा।

बालि ने मेरी पत्नी को बलपूर्वक अपने पास रख लिया है और मैं अपने प्राण बचाने के लिए जंगल में छिपा हुआ हूं।

श्रीराम ने सुग्रीव की पूरी बात सुनी और कहा कि ठीक है मैं आपकी मदद करूंगा।

पहले तो सुग्रीव को श्रीराम पर भरोसा नहीं हुआ। वह सोचने लगा कि बालि तो इतना बलवान है, राम उसे कैसे मार सकते हैं? ये कैसे मेरी मदद कर पाएंगे?

सुग्रीव के चेहरे पर संदेह देखकर श्रीराम ने कहा कि सुग्रीव, अब मैं तुम्हारा मित्र हूं। मित्र के छह गुण हैं। पहला, अपने दोस्त के दुख में दुखी होना। दूसरा, मित्र के दुख को दूर करने का प्रयास करना। तीसरा, मित्र को गलत रास्ते पर जाने से रोकना। चौथा, लेन-देन के समय शंका न करना। पांचवां, हमेशा दोस्त का भला करना और छठा गुण है, विपत्ति के समय दोस्त के साथ खड़े रहना। ये सभी अच्छे मित्र के लक्षण हैं और तुम मुझे अपना मित्र समझ सकते हो।

श्रीराम की बातें सुनकर सुग्रीव को उनकी बातों पर भरोसा हो गया। इसके बाद सुग्रीव ने भी सीता की खोज में मदद करने का वचन दिया। दोनों मित्रों ने एक-दूसरे की परेशानी को हल करने का संकल्प लिया।

*श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता की सीख*

इस प्रसंग से हम ये सीख ले सकते हैं कि मित्र के चयन में बहुत सावधानी रखनी चाहिए, क्योंकि मित्रता मुश्किल समय के लिए एक भरोसा और एक सहारा है। अगर हमारा मित्र अच्छा है तो वह मुश्किलों में हमारे साथ खड़ा रहेगा और हमारी मदद करेगा।