नापासर टाइम्स। बीकानेर ग्रामीण की सीट लूणकरणसर में इस बार का चुनाव अब तक हुए चुनावों से अलहदा है। दो निर्दलीय प्रत्याशियों ने पूरे चुनावी परिदृश्य को बदल के रख दिया है। राष्ट्रीय पार्टियों के सामने इस क्षेत्र में इस तरह की परेशानी पहले कभी खड़ी नहीं हुई थी। निर्दलीय उम्मीदवार लूणकरणसर को पसंद न हो, ऐसा भी नहीं है।
दिग्गज समाजवादी नेता मानिक चंद सुराना मोदी लहर के बावजूद यहां से निर्दलीय चुनाव जीत चुके हैं। इस सीट को भी जाट बाहुल्य माना जाता है। उसके बाद बड़ा वोट बैंक ब्राह्मणों का है। इस बार भाजपा ने अपने वर्तमान विधायक सुमित गोदारा को ही मैदान में उतारा है। इस स्थिति को देख पिछली बार की तरह प्रभुदयाल सारस्वत मैदान में उतर गये है।
वहीं कांग्रेस ने राजेन्द्र मूंड को टिकट दिया तो पूर्व मंत्री वीरेंद्र बेनीवाल ने बागी बन ताल ठोक दी है। इस क्षेत्र का चुनावी समीकरण इसी वजह से पूरी तरह गड़बड़ा गये हैं।
मतदाता का मानस जब दो भागों में बंटा हो तो उसे कुछ तय करने में ज्यादा परेशानी नहीं होती। तीन में बंटे तो थोड़ी मुश्किल आती है। मगर चार बराबरी के उम्मीदवार होते ही वो संशय में आ जाता है। लूणकरणसर के मतदाता की कमोबेश यही स्थिति है और वो इस वजह से पूरी तरह मुखरित भी नहीं है।
उसे लगता है कहीं सारस्वत व बेनीवाल में मुकाबला है तो कहीं लगता है भाजपा व कांग्रेस में टक्कर है। इसी कारण राजनीति के पंडित इस सीट पर कुछ भी टिप्पणी करने से बच रहे हैं। दलीय प्रत्याशियों की अपनी स्थिति है, क्योंकि हर दल का अपना वोट बैंक है ही। प्रभुदयाल सारस्वत ने पिछली बार निर्दलीय चुनाव लड़ा था, वो उनका वोट बैंक है। उसके बाद उनको पता था कि अगली बार भी भाजपा का टिकट मिलना आसान नहीं, इसी वजह से वे पूरे पांच साल सक्रिय रहे। दूसरी तरफ बेनीवाल का कद बड़ा है और उनके परिवार की क्षेत्र में एक पैठ है। लंबा जुड़ाव है। वे खुद इस क्षेत्र में सक्रिय भी है तो उनका भी सीधा जुड़ाव है। उनकी वो सभा जिसमें उन्होंने निर्दलीय लड़ने की घोषणा की, उसकी उपस्थिति चकित करने वाली थी। इसलिए बेनीवाल को भी यहां कम करके नहीं आंका जा सकता।
कुल मिलाकर लूणकरणसर में चतुष्कोणीय मुकाबला होने के कारण कुछ भी घटित हो सकता है। परिणाम अप्रत्याशित भी रह सकता है। इस सीट के राजनीतिक गुणा भाग को हल करना फिलहाल हो बड़ा मुश्किल है।