अधिक मास की एकादशी आज:इस व्रत से मिलता सालभर की सभी एकादशी का पुण्य, श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया था इस एकादशी के बारे

नापासर टाइम्स। पुरुषोत्तम महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पुरुषोत्तमी एकादशी कहते हैं। ये नाम पद्मपुराण में बताया गया है। वहीं, महाभारत में इसे सुमद्रा एकादशी कहा गया है। इसके अलावा आमतौर पर इसे पद्मिनी एकादशी भी कहते हैं।

पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि 3 साल में आने वाली ये एकादशी बहुत ही खास होती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत-उपवास करने से ही हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। इस व्रत से सालभर की एकादशियों का पुण्य मिल जाता है। हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक पुरुषोत्तमी एकादशी व्रत अधिक मास में आता है। भगवान विष्णु के महीने में होने से ये व्रत और भी खास हो जाता है।

इस एकादशी के बारे में सबसे पहले ब्रह्मा जी ने नारद जी को बताया था फिर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इसका महत्व बताया। इस दिन राधा-कृष्ण और शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। इस व्रत में दान का खास महत्त्व है। इस दिन मसूर की दाल, चना, शहद, पत्तेदार सब्जियां और पराया अन्न नहीं खाना चाहिए। इस दिन नमक का इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए और कांसे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए। वहीं, पूरे दिन कंदमूल या फल खाए जा सकते हैं।

*व्रत की विधि*

एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ स्नान करना चाहिए

तीर्थ स्नान न कर सकें तो घर में ही पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें डालकर नहा सकते हैं।

पानी में तिल, कुश और आंवले का थोड़ा सा चूर्ण डालकर नहाना चाहिए।

नहाने के बाद साफ कपड़े पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करें और मंदिर में दर्शन करें।

भगवान के भजन या मंत्रों का पाठ करना चाहिए और कथा सुनें।

भगवान को नैवेद्य लगाकर सब में बांट दें और ब्राह्मण भोजन करवाएं।

*व्रत की कथा*

पुराने समय में महिष्मती नगर का राजा कृतवीर्य था। उसकी कोई संतान नहीं थी। राजा ने कई व्रत-उपवास और यज्ञ किए, लेकिन फायदा नहीं हुआ। इससे दुखी हो राजा जंगल में जाकर तपस्या करने लगा। कई साल तप में बीते, लेकिन उसे भगवान के दर्शन नहीं हुए। तब उसकी एक रानी प्रमदा ने अत्रि ऋषि की पत्नी सती अनुसूया से पुत्र पाने का उपाय पूछा। उन्होंने पुरुषोत्तमी एकादशी व्रत करने को कहा।

इस व्रत को करने से भगवान राजा के सामने प्रकट हुए और उसे वरदान दिया कि तुझे ऐसा पुत्र मिलेगा जिसे हर जगह जीत मिलेगी। देव और दानव भी उसे नहीं हरा पाएंगे। उसके हजारों हाथ होंगे। यानी वो अपनी इच्छा से अपने हाथ बढ़ा सकेगा।

इसके बाद राजा के घर पुत्र हुआ। जिसने तीनों लोक को जीतकर रावण को भी हराया और बंदी बना लिया। रावण के हर सिर पर दीपक जलाकर उसे खड़ा रखा। उस महाबली को ही सहस्त्रार्जुन कहा जाता है।