Dev Uthani Ekadashi 2023: देवउठनी एकादशी पर बन रहे 3 शुभ योग, जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि*

    नापासर टाइम्स। आज देवउठनी एकादशी है. हर साल कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है. इसे हरि प्रबोधिनी एकादशी और देवुत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. ऐसी मान्यताएं हैं कि इस दिन श्री हरि भगवान विष्णु योग निद्रा से बाहर आते हैं. इस एकादशी से चातुर्मास का भी समापन हो जाता है. यानी इस एकादशी से विवाह, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे शुभ और मांगलिक कार्यों पर लगी पाबंदी हट जाती है. देवउठनी एकादशी के अगले दिन तुलसी-शालिग्राम का विवाह होता है. आइए जानते हैं कि इस बार देवउठनी एकादशी किस दिन पड़ रही है.

    *देवउठनी एकादशी का महत्व*

    हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु 4 महीने की योग निद्रा से बाहर आते हैं. उनके बाहर आते ही भगवान शिव सृष्टि का संचालन पुन: श्री हरि के हाथ में सौंप देते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, असुर राज बलि को दिए वचन के के कारण भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक पाताल लोक में विराजमान रहते हैं.

    *देवउठनी एकादशी 2023 पर बनेंगे 3 शुभ योग*

    इस साल देवउठनी एकादशी पर तीन बड़े ही शुभ संयोग बन रहे हैं. इस बार देवउठनी एकादशी पर रवि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और सिद्धि योग रहेगा. इन शुभ योगों के चलते देवउठनी एकादशी का महत्व और बढ़ गया है.

    रवि योग- सुबह 06:50 बजे से शाम 05:16 बजे तक

    सर्वार्थ सिद्धि योग- शाम 05:16 बजे से अलगे दिन सुबह 06 बजकर 51 मिनट तक

    सिद्धि योग- सुबह 11 बजकर 54 मिनट से अगले दिन सुबह 09 बजकर 05 मिनट तक

    *देवउठनी एकादशी की पूजन विधि*

    देवउठनी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद घर की अच्छे से सफाई करें और आंगन में भगवान विष्णु के पैरों की आकृति बनाएं. इसके बाद भगवान विष्णु जी का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें. श्री हरी विष्णु की प्रतिमा के समक्ष शंख और घंटियां बजाकर उनके जागने का आह्वान करें.

    इस दिन घर के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाने चाहिए. भगवान हरि को लड्डू और गन्ना, सिंघाड़ा जैसे मौसमी फल अर्पित करें. एकादशी की रात एक घी का दीपक जलाएं और भगवान विष्णु समेत सभी देव देवताओं का पूजन करें. अगले दिन सुबह भगवान विष्णु और सभी देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के बाद व्रत का पारण करें.

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