देशनोक माँ करणी ओरण परिक्रमा आज व कल दो दिन, जाने कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी देशनोक धाम माँ करणी ओरण परिक्रमा का महत्व

नापासर टाइम्स। कपिल मुनि नाम से बहुत बड़े तपस्वी हुए थे कपिल मुनि का जन्म स्थान कोलायत के पास भडाण नामक स्थान बताया जाता है हरियाणा में कलायत जिला कैथल इस क्षेत्र को मंडाण नाम से जाना जाता है यह भी कपिल मुनि का जन्म स्थान बताया जाता है। ऐसी मान्यता हे की कपिल मुनि अपनी माता जी को वृद्धावस्था में तिर्थ करवाने हेतु कपिलेसर नामक तालाब का निर्माण कर अपनी तपस्या के बल से कार्तिक मास की पूर्णिमा को गंगा सागर से पवित्र जल की सीर कपिलेसर तालाब में समाहित कर अपनी माता जी को तिर्थ स्नान करने का पुण्य प्राप्त कराया। तब से ऐसा माना जाता है कि हर वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा को कपिलेसर तालाब में पवित्र जल की सीर (धारा) आती है इसलिए यहां कार्तिक मास की पूर्णिमा को मेला लगता है।

श्री करणी माता जी के पुत्र लाखण राज जी अपने साथियों के साथ यहां पर मेला देखने आए और नहाते समय कोलायत तालाब में डूबने से मौत हो जाती है ऐसा माना जाता है कि कपिल मुनि ने श्री करणी माता जी की परिक्षा लने के लिए ऐसा किया जो भी हो यह सत्य है कि उस समय श्री करणी माता जी एक रूप धारण कर अपने निवास नेहड़ीजी रहे और यमपुरी में प्रकट होकर कर यमराज को पराजित कर लाखण राज जी को यमपुर से लेकर आए, तथा सुरलोक में प्रकट हो कर कपिल मुनि को फटकारते हुए कहा कि हे मुनि अबें थारी तपस्या रो बल मिटग्यो लागे जको तूं म्हारी परिक्षा लेइ म्हारे सागे पंगो लेणू तने मुंगो पड़ेला। तब कपिल मुनि ने कहा कि मैंने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को अपनी कुपित दृष्टि से भस्म कर दिया था मैंने घोर तपस्या करने के बाद सुर पद पाया है मेरी बराबरी कोई नहीं कर सकता है देवी मैं आपके अधिन नहीं हूं जो आप मुझे आज्ञा दें। तब श्री करणी माता जी ने कहा कि हे कपिल मनि तं जचे जके री शरण में चल्यो जा तने म्हारे कोप सूं बचावणियों तीनों लोकां में कोई नहीं मिलेला तने एक साल रो समे देऊं तूं थारे बचणे री जुगत कर लिज्ये अगली काति री चानणी चवदस रा थारो सुर पद और कपिलेसर तालाब में त्रिवेणी सूं आवण वाळी सीर बन्द कर तिर्थ धाम रो महात्व हमेशा हमेशा रे सारु मिटा देऊंला। जब कपिल मुनि को यह ज्ञात होता है कि श्री करणी माता जी साधारण देवी नहीं है स्वयं महाशक्ति है तब कपिल मुनि तेतीस कोटि देवताओं के पास जाकर प्रार्थना करता है कि आप सभी मिलकर मुझे मां करणी जी के क्रोध से बचाने का प्रयास करें।

उस समय विक्रम संवत पनरा सौ पच्चीस कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को तेतीस कोटि देवता देशनोक ओरण में पधार कर श्री करणी माता जी से प्रार्थना करते हैं कि हे माता जी अज्ञानता वश कपिल मुनि से बड़ी भुल हो गई आप अपना सेवग समझकर क्षमा करें।

श्री करणी माता जी ने कहा कि हे सुर तेतीस कोटि आप सगला आपरे आसण माथे ओरण भूमि विराजो मैं अबार धेनूं दुहारी करूं पच्छे बात करस्यां। और इतना कहने के बाद श्री करणी माता जी ने चील रूप धारण कर ओरण भूमि की प्रथम परिक्रमा करते हुए तेतीस कोटि देवताओं को बांध कर स्वर्ग लोक में प्रवेश कर कपिल मुनि का सुर पद खत्म करने के बाद पृथ्वी पर गंगा सागर नामक स्थान पर लाकर छोड़ दिया और त्रिवेणी से कपिलेसर तालाब में आने वाली पवित्र जल धारा को अपने पेर की एड़ी के दबाव से बन्द कर तिर्थ धाम का महत्व खत्म करने के बाद श्री करणी माता जी अपने निवास स्थान पर आकर देवताओं से कहा करणी तो आपरो कोल पुरो कर लियो अबें आप सगला देवता सुरलोक पधार सको तब सभी देवताओं ने कहा कि हे महाशक्ति हम सब में से किसी में भी इतना सामर्थ्य नहीं है कि आप की कार (रेखा) को लांघ सके आप हम सब को बन्धन मुक्त करने की कृपा करे।

तब श्री करणी माता जी ने कहा कि आप सगला देवता मनें ओ वचन दिराओ हर साल काति री चानणी चवदस रा म्हारे ओरण पधारो ला। उसी समय तेतीस कोटि देवताओं ने कहा कि हे महाशक्ति हम सब आपको यह वचन देते हैं कि हर वर्ष कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को ओरण भूमि आयेंगे और आपकी आज्ञानुसार रात्रि विश्राम करेंगे यह वचन लेने के बाद श्री करणी माता जी ने सभी देवताओं को बन्धन मुक्त कर दिया।

उसी समय श्री करणी माता जी ने अपने सुत और सेवकों से कहा कि शाम की आरती दर्शन करने के बाद हर वर्ष कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को ओरण भूमि की परिक्रमा करना आपको अड़सठ तीरथ स्नान करने के समान पुण्य प्राप्त होगा तेतीस कोटि देवता देशनोक ओरण भूमि पर हर वर्ष कार्तिक मास शुक्ल चतुर्दशी को रात्रि विश्राम करेंगे तो आपके द्वारा तेतीस कोटि देवताओं की परिक्रमा होगी। कोलायत तालाब में आप कभी स्नान मत करना और हर वर्ष कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को ओरण भूमि की
परिक्रमा कर पुण्य लाभ प्राप्त करना।

श्री करणी माता जी एक ही समय में नहेड़ीजी, यमपुर और स्वर्ग लोक उपस्थित रहे इसलिए श्री करणी माता जी को अनेक रूप धारणी कहा जाता है। इस प्रवाड़े का वर्णन काव्यात्मक अभिव्यक्ति के रूप में किया है

रचनाकार देविसुत महेशावत

कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी ओरण परिक्रमा महत्व

दोहा
बांध औरण बैठा वसु, करणी कोल कराय।
चवदस कार्तिक चानणी, आपे ओरण आय ।। 1 ।।
सुर कोटि तेति ज सागे, ओरण रेवे आय ।
लगती फेरि सब लागे, पुन सब आछो पाय।।2।।

छन्द चौपाई
कपिल मुनि तप तेज कहावे ।
भौम जनम भडाण बतावे ।
जनम भौम दरशन हित आया ।
लेय इला रज शीश लगाया ।।1।।
जननी चरणा शीश झुकाया ।
श्रद्धा भाव सूं धोक लगाया ।
हिंय लगा जद मां हरषाई ।
लाडेसर को छतियां लगाई ।।2।।
मन री बात कही जद माता ।
इब तिर्थ नावण मो मन आता।
गंगा नहायर पाप गमाणू ।
कर तिर्थ नावण पुण्य कमाणू।।3।।
थाय बुढापो उंमर थेटा ।
बण आवे किम नहावण बेटा ।
अब तुम बेटा कर हु उपाई ।
तव माता तिर्थ नावण तांई ।।4।।
लांठि सीर त्रिवेणी य लावां ।
सर कपिलायत मांहि समावा।
पुनम काति कपिसर परभाते।
मन इच्छा नहावण कर माते।।5।।
महात्व कार्तिक पूनम मानो।
जल त्रिवेणीरु सीर हि जानो।
नावण नेम करे नर नारी ।
होवत पुण्य पाप देह हारी।।6।।
जनमानस भावना उर जागे।
लुंठो मेलो कपिलायत लागे।
नावण आवे बहु नर नारी ।
भीड़ भरे पूनम अति भारी ।।7।।
सर महत्व तट गंगा समाना ।
जगत भाव मानष उर जाना।
भू कपिलायत मेलो भरावे।
अठे मानखो अगणित आवे।।8।।
संग सखा सुत मात सिधाया।
उर उमंगा कपिलायत आया।
लाखण अधबिच नावण लागा।
उण पल डुबे हु नीर अथागा।।9।।
पल में मां सुरलोक पधारे ।
लोवड़याल कपिल ललकारे।
बहूरि जग तिर्थ धाम बनाया।
ढबज्या लाखण राज डुबाया।।10।।
करणी महा शगत जग केवे ।
कपील परिक्षा तूं मम लेवे ।
पंगा जो करणी संग पाया ।
नेम धर्म तप रु तेज नसाया।।11।।
कपिल तप तेज दिपे नव खंडा।
मैं पाण तपो बल तिर्थ मंडा।
बरा बरी जग मो कुण बंता।
हजार साठ सागर सुत हंता।।12।।
सरियो तप मैं सांस हि सांसं।
नर देह आज सुरग निवासं।
लांठे तप बल मैं पद लीना।
अब मैं नांहि तोरे अधीना।।13।।
धर जांगल करणी धणियापे।
थीर तिरथ किम मम धर थापे।
महत्व तो तिरथ धाम मिटावां।
छिण में तव सुरलोक छुड़ावां।।14।।
मुरलोक महा शक्ति मम माने।
पंगो ले तूं पड़ियो अब पांने।
अगली कार्तिक पूनम आखां।
लेऊं लेखो छोड़ुनि लाखां।।15।।
धाक पड़े मुरलोकन धूजे।
शरणे तूं जिण जा मन सूजे।
अब तुम करलो कोड़ उपाई।
पण सोचो तूं ना बच पाई।।16।।
कपिल मुनि वासव जद केयो।
लांठो पंगो थे अब लेयो।
देवी समु नि मुरलोकन देवा।
करते सुर मुनि जन सेवा।।17।।
झट पड़ज्या करणी पग जाई।
और कपिल ना बचण उपाई।
हाण लाभ यश मां कर होया।
जगदम्ब रूप जांगल धर जोया।।18।।
फिर्ता मुनि जा सब त्रिदश पासा।
थे सब मिल मेटो मम त्रासा।
माता सगला जाय मनाओ।
करणी कोप सु माफ कराओ।।19।।
पनरा सौ संमत जद पाया।
साल पच्चीसो जगत सवाया।
चानणि चवदस कातिक चावे।
औरण सुर कोटि तेति आवे।।20।।
उबा कर जोड़े कि अरदासं।
क्षमा कपिल कर मां निज दासं।
सुर आसण आ सब सहाजो।
बिच औरण रे आय विराजो।।21।।
वैळा इण आप करो विश्रामा।
धेन दुहारी मैं करु धामा।
चील रूप करणी बण चाले।
गौचर फेरि पल में हि गाले।।22।।
बांध औरण सब देव बिठाया।
शगती अब सुरलोक सिधाया।
लेखो लेवण मुनि संग लीना।
छिण में जायर सुर पद छीना।।23।।
सुरग छोड़ धरा ज सिधाया।
थिर वासा गंग सागर थाया।
त्रिवेणी जल ना कपिसर आई।
दाब एडी रे सीर दबाई।।24।।
आद शगत अब ओरण आया।
हिय घणा गीर्वाण हरषाया।
जगदम्ब चीति हो जग जोया।
होड करे कुण शिवा सम होया।।25।।
करणी कोल पुरा अब कीना।
लेखो वचना मुनि संग लीना।
करिया करणी अब निज कामा।
देव सिधाओ आपणि धामा।।26।।
आपरो पार वसु कद पावे।
शगती कार कियांज सिधावे।
इयां कार लोपे कुण ऐड़ो।
काना हाल हुयो जद केड़ो।।27।।
देवा अब तुम वचन दिराओ।
आप काति री चवदस आओ।
ओ शगती मै वचन आखां।
लोवड़याल लोपा नि लाखां।।28।।
अब हर काति रि चवदस आवां।
जगदम्ब ओरण रात जगावां।
सब साथे सुरलोक सिधाओ।
अगली कार्तिक चवदस आओ।।29।।
कोल कोटि सुर तेतिय कीना।
आवे ओरण वचन अधीना।
शुकला कार्तिक चवदस सारे।
पठ कोटि तेति देव पधारे।।30।।
सिंज्या आरती दरशन सागे।
लगती देव फेरि सब लागे।
मही ओरण फेरि महत्व मानो।
जगदंब चरणा तिरथ जानो।।31।।
करणी ओ सुत सेवग केयो।
जल कोलायत आंच न लेयो।
ओरण फेरि देवण सब आणू।
ना कपिलेसर थे अब नाणू।।32।।
आय ओरण जो फेरि देवे।
लाखों तिर्थ नावण फल लेवे।
भूत पिसाच न आवत पासा।
तन री मेटे मां सब तासा।।33।।
पाप कटे निरमल तन पावे।
सीधा बे सुरलोक सिधावे।
जबरा तिरथ बहुत जग जाना।
ना सब ओरण फेरि समाना।।34।।
कृपा कुल महेशावत कीज्यो।
देवी अन धन रीजक दीज्यो।
गुण हरदयाल सदा तव गावे।
वर्णन कर महत्व फेरि बतावे।।35।।

दोहा
पाय ओरण फेरि पुण्य, लाखों ज तिरथ लेय ।
ना कपिलेसर नहावणु, करणी सब सुत केय ।।1।।