नापासर टाइम्स। छठ महापर्व समर्पण, सहयोग, सरोकार, संयम, संवेदना व सद्भाव का संदेश देता है। सूर्य देव व छठी मइया की पूजा अपरंपार महिमा को समर्पित व अर्पित है। इसे सभ्यता, संस्कृति, प्राकृतिक सुंदरता और समृद्धता का भी प्रतीक भी माना जाता है। इसीलिए यह भी माना जाता है कि छठ पूजा की कोई एक नहीं, बल्कि अनेकों विशेषताएं हैं, जिसमें हर कोई मदद के लिए आगे आता है। छठ पूजा का त्याग व समर्पणपूर्ण त्योहार केवल महिलाओं द्धारा ही नहीं, बल्कि पुरुषों द्वारा भी बड़े ही श्रद्धापूर्वक किया जाता है। व्रत के दौरान महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों द्वारा भी 36 घंटों का निर्जला व्रत रखा जाता है और यही छठ पूजा की अद्वितीयता है। छठ पूजा के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, प्राकृतिक जैसे अनेकों आयाम हैं, जिसे महापर्व के दौरान देखने-सुनने को मिलता है। इस बिंदु पर कुछ अनुभवी लोगों से बातचीत की गई, जिन्होंने छठ महापर्व पर खुलकर अपनी भावनाओं को व्यक्त किया।
*1. समर्पण से सीधे जुड़ जाते हैं ईश्वर से*
ज्योतिषाचार्य वागीश्वरी प्रसाद द्विवेदी बताते हैं कि बिना संपूर्ण समर्पण के लक्ष्य हासिल करने में मुश्किलें आती हैं। छठ व्रत सूर्य के प्रति आस्था, सृष्टि और स्रष्टा के समक्ष कर्ता का समर्पण ही है, जब हम किसी शक्ति के प्रति समर्पित हो जाते हैं और सीधे ईश्वर से जुड़ जाते हैं। वहीं शक्ति जीवन में हमारा कल्याण भी करती है। इसी सोंच के तहत आमजन भी छठ व्रतियों के प्रति समर्पण की भावना ही प्रकट नहीं करते, बल्कि हर कदम पर सहयोग भी करते हैं।
*2. छठ व्रत में संयम का बड़ा महत्व*
आचार्य अत्रि भारद्वाज बताते हैं कि छठ व्रत में संयम का बड़ा महत्व है। इंद्रियों को संयमित करने की प्रक्रिया व्रती पहले से शुरू कर देते हैं। व्रत के चार दिन तो संयमित जीवन का ही संदेश है। ये व्रत बिना संयम के संभव ही नहीं है। जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों को संयम कर सकता है, वही अपने जीवन में आगे बढ़ सकता है। इसी उद्देश्य से लोग छठ व्रत रखते हैं। व्रतियों के लिए बिस्तर व कपड़े तक अलग व शुद्ध रहते हैं।
*3. भोजन-आवासन व वस्त्र तक में सात्विकता*
प्रो. विवेकानंद तिवारी बताते हैं कि कार्तिक मास शुरू होते ही खाने-पीने से लेकर पहनने और सोने तक में सात्विकता रहती है। व्रत के चार दिन पहले से इसमें खास सतर्कता बरती जाती है। इस व्रत में खाने-पीने के साथ ही जीवन शैली में सात्विकता लाने का प्रयास किया जाता है। यही सात्विकता हमें ईश्वर से जोड़ती है। जिनके घर व्रत होता है वह भी और अन्य लोग भी सात्विकता को अपनाते हैं। प्याज-लहसुन तक छोड़ देते हैं।
*4. मदद करने का गुर बांटता है छठ व्रत*
रेडक्रास सोसाइटी के सचिव प्रसून कुमार मिश्र का कहना है कि छठ में प्रयोग होने वाली किसी चीज के लिए किसी में नकार भाव बिल्कुल ही नहीं है। दूध, नारियल, सूप, गन्ना, लकड़ी, पूजा सामग्री आदि लोग खुले हाथ बांटते हैं। सहृदयता का अर्थ है खुले दिल से उन लोगों की मदद करना, जो किसी न किसी रूप से असक्षम हैं। ये पर्व हमें दूसरों की खुशियां देना सिखाता है। मदद करने का गुर बांटता है। आमजनों के अंदर भक्ति की भावना को जन्म देता है।
*5. लोगों के मन में पैदा होता है सद्भाव*
विद्वान अमरेंद्र पाठक का कहना है कि छठ महापर्व लोगों के मन में सद्भाव पैदा करने का काम करता है। यही कारण है कि आम लोग भी व्रतियों के प्रति सद्भावना दिखाते हैं। इसी भावना के तहत वह व्रतियों की मदद के लिए आगे-आगे रहते हैं। घाटों पर बिना किसी भेदभाव के व्रतियों के उतारे कपड़े तक धोते हैं। दूध, दातुअन पहुंचाते हैं। आंचल फैलाकर प्रसाद मांगते हैं। हर कोई व्रतियों के सहयोग में खड़ा दिखता है। यही आस्था है।
*6. छठ व्रत में दिखता है संवेदना*
आयुवेदाचार्य अखंडानंद जी बताते हैं कि छठ व्रत में नाते-रिश्तेदार ही नहीं पड़ोस के लोग भी व्रतियों से सरोकार रखते हैं। संवेदना देखने को मिलता है। प्रसाद तैयार कराने, व्रतियों के साथ घाट तक जाने, व्रतियों के परिवार के लिए भोजन तैयार करने, घरों की साफ-सफाई, पूजा-पाठ में सहयोग कर पर्व व व्रतियों के प्रति समर्पित नजर आते हैं। परिजन भी आपस में समन्वय बनाकर एक-दूसरे का सहयोग कर व्रत के दौरान पूजा कराते हैं।