नापासर टाइम्स। काल भैरव अष्टमी बुधवार 16 नवंबर को मनाई जाएगी। इस बार अष्टमी पर दो विशेष योग ब्रह्म और इन्द्र का शुभ संयोग रहेगा। अष्टमी तिथि 16 नवंबर को सूर्योदय से 17 नवंबर, गुरुवार की सुबह 07:56 तक रहेगी। चूंकि कालभैरव अष्टमी का पर्व मध्यरात्रि को मनाया जाता है, इसलिए ये पर्व 16 नवंबर को ही मनाया जाएगा। ज्योतिविंद पंडित हरिनारायण व्यास मन्नासा के अनुसार भैरव से काल भी भयभीत रहता है। इसलिए इन्हें काल भैरव के नाम से भी जाना जाता है। भैरव भगवान शिव के ही दूसरे रूप हैं। इसी दिन शिवजी के प्रिय गण भैरवनाथ का जन्म हुआ था। भैरव अष्टमी पर व्रत करने का भी महात्म्य है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को भगवान गणेश, विष्णु, यम, चंद्रमा, कुबेर आदि ने भी किया था। मन्त्रा के अनुसार यह समस्त कामनाओं को देने वाला व्रत है। भैरव अष्टमी पर भैरूंजी के दर्शन मात्र करने सेही पापों से मुक्ति मिल जाती है।
असंभव को संभव करते हैं काल भैरव
भैरव को रात्रि का देवता माना जाता है। इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि को 12 से 3 बजे तक माना जाता है। किसी भी असंभव काम को करने का जिम्मा भी भैरूंजी के पास ही माना जाता है। ज्योतिष में भैरुजी का अलग स्थान है। मन्नासा के अनुसार किसी जातक की कुंडली में अगर राहु 6,8,12 वें भाव में स्थित है और राहु की दशा है तो जातक को रविवार के दिन भैरव मंदिर में इमरती व कचौड़ी चढ़ानी चाहिए। इसके साथ ही तेल का अभिषेक भी करना चाहिए।
तोलियासर भैरव मंदिर में 16 की रात को होगा अभिषेक
श्रीडूंगरगढ़ तहसील के तोलियासर भैरव मंदिर में भैरवाष्टमी पर 16 नवंबर को रात 11 बजे से 4 बजे तक अभिषेक होता है। मंदिर के पुजारी प्रदीप ने कुमार ने बताया कि भैरवनाथ को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। शिव का भी रात को चारों प्रहर पूजन होता है। इसलिए भैरव का भी रात को अभिषेक होता है। मंदिर में रात का अभिषेक करने वाले अष्टमी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और रविवार को बाबा के दरबार पहुंचते है। तोलियासर में भैरवनाथ की दो मूर्तियां है। भैरव भक्त मूल मंदिर में तेल, सिंदूर और पाने से बाबा का अभिषेक करते है और भोग लगाते हैं। वहीं सभा मंदिर में बाबा को सवामणी, दूध आदि चढ़ाते हैं। सहायक पुजारी अशोक कुमार ने बताया कि बाबा कालभैरव भगवान शिव के हो अवतार है। उनके इस कालभैरव स्वरूप के अभिषेक से श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं भी जुड़ी रहती हैं। बाबा भैरव नाथ को मध्यरात्रि में दूध, दही, घी, शहद और देशी खांड से तैयार पंचामृत से विशेष अभिषेक होता है। इसमें दूध, दही और घी देशी गायों से प्राप्त होने वाला प्रयोग में लिया जाता है। इसके साथ ही भक्तों की मनोकामना के अनुसार जैसे समृद्धि के लिए दूध से, रोग निवारण के लिए सरसों के तेल से, भौतिक परेशानी के निवारण के लिए सरसों और चमेली के तेल से, लक्ष्मी के आगमन के लिए गन्ने के जूस से बाबा का महाभिषेक किया जाता है। बाबा के कुंवारे लोग साफा बांधकर और सन्तान प्राप्ति के लिए नारियल को लाल वस्त्र में लपेटकर मन्नत लगाई जाती है।