नापासर टाइम्स। प्रत्येक माह अमावस्या तिथि आती है और अमावस्या का खास महत्व माना गया है. लेकिन भाद्रपद में आने वाली अमावस्या बहुत ही महत्वपूर्ण होती है और इसके कुछ समय बाद पितृ पक्ष की शुरुआत होती है. भाद्रपद में आने वाली अमावस्या को भाद्रपद अमावस्या या भादो अमावस्या के नाम से जाना जाता है. इस दौरान पवित्र नदियों में स्नान व दान का खास महत्व होता है. कहते हैं कि इससे पितर प्रसन्न होते हैं और अपना आशीर्वाद देते हैं. जिन लोगों पर पितरों की कृपा होती है उनके जीवन में हर कार्य सफल होता है और सुख-शांति का माहौल बनता है. आइए जानते हैं इस बार कब है भाद्रपद अमावस्या?
*भाद्रपद अमावस्या 2023 कब है?*
पंचांग के अनुसार भाद्रपद अमावस्या तिथि 14 सितंबर को सुबह 4 बजकर 48 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 15 सितंबर को सुबह 7 बजकर 9 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार भाद्रपद अमावस्या 14 सितंबर 2023 को मनाई जाएगी.
*स्नान-दान का शुभ मुहूर्त*
भाद्रपद अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व माना गया है. इसके बाद व्यक्ति को अपने सामर्थ्य के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए. 14 सितंबर को भाद्रपद अमावस्या के दिन भी स्नान के बाद दान जरूर करें. अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठना शुभ माना गया है और इस दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4 बजकर 32 मिनट से लेकर सुबह 5 बजकर 19 मिनट तक रहेगा. ब्रह्म मुहूर्त में उठने के बाद सुबह 6 बजकर 5 मिनट से लेकर सुबह 7 बजकर 38 मिनट तक स्नान व दान के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त है. भाद्रपद अमावस्या के दिन शुभ योग भी बन रहे हैं. इस दिन सुबह पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र लग रहा है जो कि अगले दिन यानि 15 सितंबर को सुबह 4 बजकर 54 मिनट तक रहेगा.
*भाद्रपद अमावस्या का महत्व*
वैसे तो प्रत्येक माह की अमावस्या बहुत ही खास होती है लेकिन भाद्रपद अमावस्या का विशेष महत्व माना गया है. कहते हैं कि इस दिन पितरों का तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करना भी फलदायी माना गया है. साथ ही अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने से सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है. अमावस्या के दिन गंगा नदी में स्नान करना शुभ माना गया है लेकिन यह संभव न हो तो नहाते समय पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिला लें. स्नान के बाद पीपल के पेड़ की जड़ में जल चढ़ाएं. शाम के समय पीपल के पास सरसों के तेल का दीपक जलाएं. इससे पितर प्रसन्न होकर अपना आशीर्वाद देते हैं.