श्रीराम-सीता और हनुमान जी की पूजा का शुभ योग:विवाह पंचमी आज: हनुमान जी के सामने दीप जलाकर करें सुंदरकांड का पाठ, इससे दूर होती है नकारात्मकता

नापासर टाइम्स,आज (28 नवंबर) को श्रीराम और सीता जी के विवाह की तिथि है। इसे विवाह पंचमी कहा जाता है। त्रेता युग में अगहन शुक्ल पंचमी पर ही श्रीराम और सीता का विवाह जनकपुर में हुआ था। इस पर्व पर श्रीराम-सीता का विशेष पूजन किया जाता है। इनके साथ ही राम जी के परम भक्त हनुमान जी की पूजा भी जरूर करनी चाहिए।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य और राम कथाकार पं. मनीष शर्मा के मुताबिक श्रीराम हनुमान जी की पूजा करने वाले भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं, ऐसी मान्यता है। विवाह पंचमी पर हनुमान जी के सामने दीपक जलाकर सुंदरकांड का पाठ करें। सुंदरकांड के पाठ से भक्त का आत्मविश्वास बढ़ता है, नकारात्मक विचार दूर होते हैं और कार्यों में आ रही बाधाओं का सामना करने का साहस मिलता है।

*हनुमान जी की विजय का अध्याय है सुंदरकांड*

श्रीरामचरित मानस के सुंदरकांड का महत्व काफी अधिक है, क्योंकि इस अध्याय में हनुमान जी की विजय गाथा है। श्रीरामचरित मानस के सभी अध्यायों में श्रीराम के गुणों और उनके पुरुषार्थ की बातें कही गई हैं, लेकिन सिर्फ सुंदरकांड हनुमान जी को समर्पित है। इस कांड में हनुमान जी ने समुद्र लांघा और लंका जाकर देवी सीता की खोज की, लंका दहन किया और लंका से लौटकर श्रीराम को सीता जी के बारे में जानकारी दी। ये काम बहुत ही मुश्किल था, लेकिन हनुमान जी ने अपने साहस और बुद्धि के बल पर इस काम में सफलता हासिल की थी।

*सुंदरकांड के पाठ से बढ़ता है आत्मविश्वास*

मनोविज्ञान के नजरिए से देखेंगे तो सुंदरकांड के पाठ से व्यक्ति का आत्मविश्वास, संकल्पशक्ति और इच्छाशक्ति बढ़ती है। सुंदरकांड के पाठ से व्यक्ति को बुद्धि का विकास होता है। हनुमान जी का सुंदरकंड ये बताता है कि हमें मुश्किल समय में किस तरह से काम करना चाहिए।

*श्रीरामचरित मानस के पांचवें अध्याय का नाम सुंदरकांड क्यों है?*

लंका त्रिकुटाचल नाम के पर्वत पर बसी हुई थी। त्रिकुटाचल पर्वत यानी यहां 3 पर्वत थे। पहला सुबैल पर्वत, जहां के मैदान में राम-रावण युद्ध हुआ था। दूसरा नील पर्वत, जहां राक्षसों के महल बसे हुए थे और तीसरे पर्वत था सुंदर पर्वत, जहां अशोक वाटिका थी, जिसमें देवी सीता को रावण ने रखा था। अशोक वाटिका में ही हनुमान जी और सीता जी की भेंट हुई। पांचवें अध्याय की यही सबसे खास घटना थी, इसलिए इस अध्याय का नाम सुंदरकांड रखा गया है।