नापासर टाइम्स। 22 मई को अगस्त्य तारा अस्त हो जाएगा। दक्षिण दिशा में एक सबसे चमकदार तारा दिखता है, इसे अगस्त्य तारा कहते हैं। 7 सितंबर को अगस्त्य तारा उदय हो जाएगा। जनवरी से अप्रैल तक दक्षिण दिशा में इस तारे को आसानी से देखा जा सकता है। इन महीनों में इसके आसपास कोई अन्य इतना चमकीला तारा नहीं होता है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, भारत के दक्षिणी क्षितिज पर दिखाई देने वाला ये तारा अन्टार्कटिका में सिर के ऊपर दिखाई देता है। ये तारा पृथ्वी से करीब 180 प्रकाश वर्ष दूर है। एक प्रकाश वर्ष करीब 95 अरब किमी के बराबर होता है। ये तारा सूर्य से लगभग सौ गुना अधिक बड़ा है। शास्त्रों में अगस्त्य तारे की कथा बताई गई है। ये कथा अगस्त्य मुनि से जुड़ी हुई है।
*सूर्य और अगस्त्य की वजह से होता है वाष्पीकरण*
सूर्य और अगस्त्य तारा की किरणे पृथ्वी पर पड़ती हैं। सूर्य और अगस्त्य की वजह से ही दक्षिण दिशा के समुद्रों से वाष्पीकरण होता है। सूर्य जनवरी में उत्तरायण होता है और अगस्त्य तारा मई तक उदय रहता है। इस कारण अगस्त्य तारे के अस्त होने तब तक समुद्रों से वाष्पीकरण की प्रक्रिया चलती रहती है। जब अगस्त्य तारा अस्त हो जाता है, उसके कुछ दिनों बाद वर्षा ऋतु शुरू होती है।
आचार्य वराहमिहिर के सिद्धांत के अनुसार सूर्य और अगस्त्य तारे की वजह से मेघ यानी बादल बारिश के लिए तैयार हो जाते हैं। अगस्त्य तारे के अस्त होने के बाद मई के अंतिम सप्ताह से मानसून केरल से शुरू हो जाता है और जून के अंतिम सप्ताह में उत्तर भारत में पहुंचता है।
*अगस्त्य तारे से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं*
अगस्त्य तारे के संबंध में धार्मिक मान्यता ये है कि पुराने समय में वृत्तासुर नाम का एक राक्षस था। देवराज इंद्र ने वृत्तासुर का वध कर दिया तो उसकी सेना समुद्र में छिप गई थी। रात में असुरों की सेना समुद्र से निकलती और देवताओं पर आक्रमण कर देती थी और फिर समुद्र में छिप जाती थी। सभी देवता समुद्र में असुरों को खोज नहीं पा रहे थे।
तब सभी देवता विष्णु जी के पास पहुंचे। विष्णु जी ने देवताओं को अगस्त्य मुनि के पास भेज दिया। अगस्त्य मुनि ने देवताओं की परेशानी समझी और समुद्र का पानी पी लिया। इसके बाद देवताओं ने असुरों की सेना का संहार कर दिया।
इस कथा की वजह से कहा जाता है कि अगस्त्य तारा समुद्र का पानी पी लेता है। अगस्त्य तारे की वजह से समुद्र से वाष्पीकरण होता है, इसे ही अगस्त्य का समुद्र पीना कहते हैं।