नापासर टाइम्स। गुरु पूजा का महापर्व आषाढ़ पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) सोमवार, 3 जुलाई को है। शास्त्रों में गुरु का स्थान भगवान के बराबर बताया गया है, क्योंकि गुरु ही हमें भगवान को पाने का रास्ता बताते हैं। 29 जून को देवशयनी एकादशी थी और इसके बाद गुरु पूर्णिमा का पर्व आता है यानी देव शयन के बाद गुरु ही हमें परेशानियों से बचाते हैं।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, गुरु अपने उपदेशों से शिष्य के अज्ञान को दूर करता है। देवशयनी एकादशी के बाद गुरु पुर्णिमा आने का अर्थ ये है कि देव शयन के बाद गुरु का ही सहारा रहता है। गुरु ही अपने शिष्यों का कल्याण करते हैं। इसलिए गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान माना गया है।
*देव व्यास की जन्म तिथि है आषाढ़ पूर्णिमा*
पुराने समय में आषाढ़ मास की पूर्णिमा पर महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। वेद व्यास जी ने वेदों का संपादन किया, महाभारत, श्रीमद् भागवद् गीता, 18 पुराणों की रचना की थी। वेद व्यास की जयंती पर ही गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है।
*कैसे मनाई गुरु पूर्णिमा*
वैसे तो हर रोज गुरु की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि गुरु के बिना हमारे जीवन में प्रकाश नहीं आता है, लेकिन गुरु पूर्णिमा पर गुरु पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन अपने गुरु को नए कपड़े, कोई उपहार, शॉल-श्रीफल या कोई अन्य भेंट दे सकते हैं। गुरु को तिलक लगाएं। हार-फूल की माला पहनाएं। गुरु के चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लें। उनके उपदेशों सुनें और उन्हें जीवन में उतारने का संकल्प लें।
*अगर कोई गुरु न हो तो क्या करें ?*
जिन लोगों के गुरु नहीं हैं, उन्हें अपने इष्टदेव का पूजन करना चाहिए। आप चाहें तो शिव जी, विष्णु जी, गणेश जी, सूर्य देव, देवी दुर्गा, हनुमान जी, श्रीकृष्ण को गुरु मानकर इनकी पूजा कर सकते हैं। इनके अलावा अपने माता-पिता, घर के अन्य बड़े लोगों को गुरु मानकर उनकी पूजा की सकती है। जिन लोगों ने किसी को गुरु नहीं माना है तो वे लोग गुरु पूर्णिमा पर किसी योग्य व्यक्ति को अपना गुरु मान सकते हैं और उनसे गुरु दीक्षा ले सकते हैं।
*ये हैं गुरु से जुड़ी मान्यताएं*
माना जाता है कि जिन लोगों का कोई गुरु नहीं है, उनकी पूजा भगवान स्वीकार नहीं करते हैं। गुरुहीन व्यक्ति द्वारा किए गए श्राद्ध कर्म, तर्पण आदि पितर देवता स्वीकार नहीं करते हैं। इसलिए किसी योग्य व्यक्ति को गुरु बनाकर उनसे गुरु दीक्षा लेनी चाहिए। ध्यान रखें कभी भी गुरु के पास खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। गुरु के लिए फल, वस्त्र, अन्न या कोई उपहार ले जा सकते हैं। गुरु द्वारा दिए गए मंत्र का जप करना चाहिए और गुरु मंत्र को गुप्त रखना चाहिए। जिस तरह से मंत्री का पाप राजा को और स्त्री का पाप पति को लगता है, उसी प्रकार शिष्य का पाप गुरु को ही लगता है। ऐसा कोई काम न करें, जिसकी वजह से गुरु को अपमानित होना पड़ सकता है।