Parshuram Jayanti 2023: आज है परशुराम जयंती, जानें, कथा, पूजा विधि और महत्व*

नापासर टाइम्स। हिंदी पंचांग के अनुसार, हर वर्ष वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया को परशुराम जयंती मनाई जाती है। इस प्रकार साल 2023 में 22 अप्रैल को परशुराम जयंती है। इस दिन अक्षय तृतीया भी है। सनातन शास्त्रों के अनुसार, वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया को जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी, परशुराम के रूप में पृथ्वी लोक पर अवतरित हुए थे। अतः इस तिथि पर परशुराम जयंती मनाई जाती है। यह पर्व देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। कई जगहों पर शोभा यात्रा का भी आयोजन किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान परशुराम की पूजा उपासना करने से साधक को अमोघ फल की प्राप्ति होती है। आइए, पूजा विधि और कथा जानते हैं-

*_कथा_*

सनातन शास्त्र के अनुसार, चिरकाल में महिष्मती नगर में क्षत्रिय नरेश सहस्त्रबाहु का शासन था। राजा सहस्त्रबाहु क्रूर और निर्दयी था। उसके अत्याचार से प्रजा में त्राहिमाम मच गया। लोग अपने राजा से निराश और हताश थे। उस समय माता पृथ्वी, जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास गईं। माता पृथ्वी के आने का औचित्य श्रीहरि को पूर्व से ज्ञात था। इसके लिए माता पृथ्वी को आश्वासन दिया कि आने वाले समय में सहस्त्रबाहु के अत्याचार का अंत अवश्य होगा। जब-जब किसी अधर्मी द्वारा धर्म पतन करने की कोशिश की जाती है। उस समय धर्म स्थापना के लिए मैं जरूर अवतरित होता हूं। आगे उन्होंने कहा -हे देवी! मैं महर्षि जमदग्नि के घर पुत्र रूप में अवतार लेकर सहस्त्रबाहु का वध करूंगा। आगे चलकर वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया को जगत के पालनहार विष्णु जी, परशुराम रूप में अवतरित हुए। कालांतर में परशुराम भगवान ने क्षत्रिय नरेश सहस्त्रबाहु का वध कर पृथ्वी वासियों को सहस्त्रबाहु के अत्याचार, भय और आतंक से मुक्त किया। उस समय भगवान परशुराम के क्रोध को महर्षि ऋचीक ने शांत किया था।

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर और सबसे पहले भगवान श्रीहरि विष्णु को प्रणाम करें। इसके बाद नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। अब आचमन कर नवीन वस्त्र पहनें। इसके बाद सूर्यदेव को जल का अर्घ्य दें और भगवान परशुराम की पूजा उपासना करें। भगवान को पीले रंग के पुष्प और पीले रंग की मिठाई अर्पित करें। अंत में आरती कर परिवार के कुशल मंगल की कामना करें। इस दिन व्रत करने वाले साधक को निराहार रहना चाहिए। संध्या काल में आरती-अर्चना करने के बाद फलाहार करें। अगले दिन पूजा-पाठ के पश्चात भोजन ग्रहण करें।