दो दिन रहेगी आश्विन पूर्णिमा : 6 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा और 7 तारीख को स्नान-दान की पूर्णिमा, भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का करें अभिषेक

नापासर टाइम्स। शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, ये पर्व आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से युक्त होकर पृथ्वी पर अमृत वर्षा करता है। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विशेष पूजा करने की परंपरा है। इस साल आश्विन पूर्णिमा 6 और 7 अक्टूबर को रहेगी।

इस साल पंचांग की गणना के अनुसार, आश्विन पूर्णिमा तिथि दो दिन पड़ रही है, इस कारण व्रत-पर्व की तारीख को लेकर पंचांग भेद हैं। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब कोई तिथि सूर्योदय के बाद शुरू होती है और अगले दिन सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाती है या दो अलग-अलग दिनों को स्पर्श करती है।

पूर्णिमा तिथि का आरंभ: 6 अक्टूबर, सोमवार को सुबह करीब 11 बजे से।

पूर्णिमा तिथि का समापन: 7 अक्टूबर, मंगलवार को सुबह करीब 9:10 बजे तक।

चूंकि शरद पूर्णिमा पर्व रात्रि व्यापिनी पूर्णिमा (वह पूर्णिमा जो रात में रहती है) में मनाया जाता है, इसलिए ये पर्व 6 अक्टूबर को मनाया ज्यादा श्रेष्ठ है, क्योंकि इसी तारीख की रात में पूर्णिमा तिथि रहेगी, जबकि 7 तारीख को सुबह 9.10 बजे ही पूर्णिमा तिथि खत्म हो जाएगी।

*स्नान और दान की पूर्णिमा 7 अक्टूबर को*

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, पूर्णिमा तिथि अगले दिन 7 अक्टूबर की सुबह सूर्योदय के समय भी रहेगी, इसलिए इस दिन स्नान, दान और तर्पण करना चाहिए। 7 तारीख को पवित्र नदियों में स्नान करें और स्नान के बाद दान-पुण्य करें।

*शरद पूर्णिमा पर क्या करें*

शरद पूर्णिमा की रात को धार्मिक और स्वास्थ्य दोनों ही दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन किए गए कार्यों का विशेष फल प्राप्त होता है।

*मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु का करें अभिषेक*

शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस रात मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं और देखती हैं कि ‘को जागृति’ (कौन जाग रहा है)। जो भक्त रात भर जागकर लक्ष्मी जी और भगवान विष्णु का ध्यान-पूजन करते हैं, उन पर मां की विशेष कृपा बरसती है और घर में सुख-समृद्धि आती है। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का विशेष अभिषेक जरूर करें। पूजन में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को कमल का फूल, सफेद वस्त्र, फल, और खीर अर्पित करें।

*चंद्रमा की चांदनी में खीर रखें और फिर सेवन करें*

इस रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होता है और माना जाता है कि इसकी किरणें औषधीय गुणों से युक्त अमृत के समान होती हैं। गाय के दूध से बनी खीर को खुले आसमान के नीचे (छलनी से ढक कर) चंद्रमा की चांदनी में रखें। बाद में प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण करें। ये खीर शरीर को निरोगी बनाने वाली मानी जाती है।

*चंद्र देव को अर्घ्य दें और मंत्र जप करें*

चंद्रोदय होने पर चंद्र देव को दूध, जल, चावल और सफेद फूल मिलाकर अर्घ्य दें। चंद्रमा के लिए ऊँ सों सोमाय नमः’ या ऊँ श्रीं श्रीं चंद्रमसे नमः मंत्र का जप करें।

*दीपदान और दान-पुण्य करें*

इस दिन दीपदान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। किसी पवित्र नदी में या मंदिर में दीप जलाकर प्रवाहित करें। इससे माता लक्ष्मी और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। सफेद वस्तुओं जैसे दूध, दही, चावल, चीनी, या सफेद वस्त्रों का दान करने से चंद्र देव प्रसन्न होते हैं और जीवन में शीतलता, सुख तथा धन-धान्य की वृद्धि होती है।