हड़ताली पशु डॉक्टर्स का तर्क: पशुओं की मौत पर दुख,सरकार की हठधर्मिता से मजबूर,पशुपालकों की पीड़ा: बेइलाज मरते पशुओं को बेबस देख रहे 80 लाख पशुओं का रजिस्ट्रेशन, 350 का ही बीमा

नापासर टाइम्स। सियाणा गांव की एक ढाणी में कई भेड़ों की मौत हो गई है। कुछ बेहोशी की हालत में आखिरी सांसें गिन रही है। पशुपालक बेबस देख रहे हैं। सरकारी पशु चिकित्सालय गए तो बताया डॉक्टर हड़ताल पर है। सरकारी सेंटर पर दवाई तो है लेकिन डॉक्टर के लिखे बिना दे नहीं सकते। प्राइवेट डॉक्टर-फार्मासिस्ट के पास गए तो जो दवाई लिखी उसकी कीमत इतनी है कि रेवड़ की सभी भेड़ों को पूरी डोज दे पाना काफी महंगा पड़ सकता है। वे सरपंच से लेकर दूसरे जनप्रतिनिधियों से पूछ रहे हैं, आखिर कब टूटेगी हड़ताल। सवाल, सभी बीमार भेड़ों को मौत पहले आएगी या डॉक्टर?

दृश्य दो: बीकानेर वेटेरनरी हॉस्पिटल के आगे डॉक्टर्स का धरना

गोगागेट स्थित वेटेरनरी हॉस्पिटल के आगे बैठे जिलेभर से आए हुए डॉक्टर्स

बीकानेर के गोगागेट स्थित वेटेरनरी हॉस्पिटल के आगे बैठे जिलेभर से आए हुए डॉक्टर्स। यह धरना है डॉक्टर्स का। निशा चोपड़ा, रुपल दाधीच, रितु शर्मा, रितु मिढा, कमलेश धवन, उत्तम भाटी, हरिकारण बिठू, लक्ष्मीनारायण, सुनील विश्नोई, पुनम पुरी, सुनील मेघवाल, लखनपाल आदि डॉक्टर मौजूद हैं। चर्चा चल रही है डॉक्टर्स की इकलौती मांग-नॉन प्रेक्टिस अलाउंस यानी एनपीए की। डॉ.कमल व्यास बोले, अभी यहां हवन किया गया। यह सरकार की सद्बुद्धि का यज्ञ था। सातवां दिन है जब पशु चिकित्सक धरने पर है। संघर्ष समिति के संचालक ओ.पी.पड़िहार ने कामधेनु पशु योजना का जिक्र बताया कितने रजिस्ट्रेशन हुए और कितनों की बीमा। डा.राजेश पारीक बोले, हमारी एक ही तो मांग है-एनपीए। यह पशुपालकों के भी हित में हैं। सरकार को हठधर्मिता छोड़ मानना चाहिए।