नापासर टाइम्स। आज (रविवार, 10 सितंबर) भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी है। इसे जया और अजा एकादशी कहा जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु के व्रत-उपवास और पूजा की जाती है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, विष्णु पूजा के लिए जरूरी चीजों में से एक है तुलसी। तुलसी के पत्ते एकादशी, रविवार, सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के दिनों में नहीं तोड़ना चाहिए। इन दिनों में तुलसी के पत्ते तोड़ना अशुभ माना जाता है। इन दिनों के अलावा रात में भी तुलसी के पत्ते तोड़ने से बचना चाहिए। रात में तुलसी को स्पर्श भी नहीं करना चाहिए। बिना वजह तुलसी के पत्ते कभी न तोड़ें।
*तुलसी से जुड़ी ध्यान रखें ये बातें*
तुलसी तोड़ने के लिए वर्जित किए गए दिनों में पूजा-पाठ में तुलसी के पत्तों की जरूरत हो तो पुराने या तुलसी के पौधे के पास गिरे हुए पत्तों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
तुलसी विष्णु जी को प्रिय है, पूजनीय और पवित्र है, इसकी पूजा देवी के समान की जाती है। इसी वजह से तुलसी को बिना वजह और वर्जित किए गए दिनों में तोड़ने से दोष लगता है।
तुलसी के पत्तों को कई दिनों तक धोकर पूजा में इस्तेमाल किया जा सकता है, ये पत्ते कभी बासी नहीं माने जाते हैं।
गणेश जी, शिव जी और मां दुर्गा को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए। घर में जहां तुलसी का पौधा लगा है, वहां साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। तुलसी के आसपास पवित्रता और सुंदरता बनाए रखें।
सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त से पहले तुलसी के पौधे में जल चढ़ाना चाहिए। तुलसी के पास भगवान शालग्राम की मूर्ति भी रखें। तुलसी के पास घी का दीपक जलाएं, परिक्रमा करें। ऐसा रोज करना चाहिए। सूर्यास्त के बाद तुलसी को न छूएं।
*स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है तुलसी का सेवन*
तुलसी के पत्ते या तुलसी का अर्क हमारी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है। नियमित रूप से तुलसी के सेवन से सिर दर्द, पेट संबंधी बीमारियां, मौसमी बीमारियां, सर्दी-जुकाम जैसी छोटी-मोटी बीमारियों लाभ होता है। इसके सेवन से हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
*एकादशी पर ऐसे कर सकते हैं विष्णु पूजा*
एकादशी पर सुबह और शाम, दोनों समय भगवान विष्णु-लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। पूजा में भगवान का अभिषेक जल, दूध और फिर जल से करना चाहिए। अभिषेक करने के लिए दक्षिणावर्ती शंख का इस्तेमाल करना चाहिए। हार-फूल और नए वस्त्रों से सुंदर श्रृंगार करें। भगवान को पंचामृत, तुलसी, मिठाई, मौसमी फल चढ़ाएं। और शुद्ध जल से नहलाएं। चंदन, चावल और अन्य पूजन सामग्री चढ़ाएं। धूप-दीप जलाएं, आरती करें। पूजा के बाद भगवान से क्षमा याचना करें। प्रसाद बांटें और खुद भी लें.