नापासर टाइम्स। बीकानेर जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर दूर गांव मोमासर सजा-धजा हुआ है। बहुत सारे स्वागत द्वार हुए हैं।गांव के केंद्र में बने भोमिया जी के मंदिर के आगे हाथों ये लिए सैकड़ों महिला और पुरुष महाआरती शुरु होने की तैयारी कर रहे हैं। कुछ ही देर में पुष्कर के पंडितों की टीम महाआरती शुरु करती है और लोक कला के रंगों में रंगे लोग भक्ति के माहौल में डूब जाते हैं। गांव में अलग तरह का उत्साह का माहौल इसलिए भी है। क्योंकि यहां 200 से ज्यादा कलाकार तो आए ही हैं इतने ही प्रवासी भी उत्सव में शामिल होने के लिए गांव आए हुए हैं।
सेठों ने कलाकारों के लिए खोल दी हवेलियां
दुबई, दिल्ली, कलकत्ता, बेंगलुरु और त्रिचूर तक से गांव के लोग आए हैं। अब प्रवासियों के गांव आने का यह उत्सव भी एक बहाना है। गांव में आए कलाकारों और मेहमानों के लिए सेठों ने अपनी हवेलियां खोल दी हैं। सेठ जयचंद लाल पटावरी की हवेली का तो खासतौर से पटावरी परिवार ने उत्सव के लिए ही रिनोवेशन करवाया है।
कोरोना के कारण 2 साल रुकावट आई
मोमासर उत्सव की शुरुआत 2011 में हुई थी। बीच में 2 साल कोरोना की रुकावट जरूर आई, लेकिन इस बार यह दुगुने उत्साह से शुरू हो गया। ग्रामीण क्षेत्र के ऐसे कलाकार और वाद्ययंत्र, जिनको बड़ी पहचान नहीं मिली, उन्हें भी इस उत्सव में मंच मिल रहा है। उत्सव में शामिल होने आए जाने-माने कवि संपत सरल और प्रख्यात राजस्थानी गायिका सीमा मिश्रा कहते हैं- भीड़भाड़ वाले शहरों से दूर एक दूरस्थ गांव में लोक संगीत को सुनना अलग तरह का अनुभव है। यहां माइक का उपयोग किए बिना वाद्य यंत्रों को ओरिजनल फॉर्म में सुनना अलग फील देता है।
उत्सव गांव में ही क्यों? इस सवाल पर जाजम फाउंडेशन के फेस्टिवल डायरेक्टर विनोद जोशी बोले- लोक कलाएं जितनी भी हैं वे पैदा गांव में हुई है, लेकिन वैभव शहरों में है। फेस्टिवल सारे शहरों में होते हैं। हमारी कोशिश है की लोक कला को उसकी जमीन पर ही साकार किया जाए। यह सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं कर रहे, इसमें एक संदेश है। दूसरा, यहां जो भी आएगा वह पक्का संगीत प्रेमी ही होगा। गांव के लोगों को इस बहाने रोजगार भी मिलेगा। उन्होंने 2003 में एक कल्चरल सर्वे किया था। करीब 20 हजार लोक कलाकारों की पहचान की थी। मोमासर उत्सव सहित 35 उत्सवों में इनमें से 9936 कलाकारों को मंच दे चुके हैं।
इकतारे पर गाने वाली अकेली टीम
चूरू जिले की जमुना देवी और माली देवी इकतारे पर गाने वाली अपनी तरह की अकेली कलाकार हैं। वे इस उत्सव में प्रस्तुति दे रही हैं। बारां जिले के शाहबाद के नंदकिशोर धूम धड़ाका नामक वाद्य यंत्र बजाते हैं। संभवत वे भी इसके अकेले कलाकार हैं. उदयपुर जिले के भील, गमेती और डामोर कलाकार भी यहां आए हुए हैं. उत्सव का उद्देश्य है – जिनमें काबिलियत है लेकिनजल का जनुना दवा जार माला दपा कतार पर गाने वाली अपनी तरह की अकेली कलाकार हैं। वे इस उत्सव में प्रस्तुति दे रही हैं। बारां जिले के शाहबाद के नंदकिशोर धूम धड़ाका नामक वाद्य यंत्र बजाते हैं। संभवत वे भी इसके अकेले कलाकार हैं. उदयपुर जिले के भील, गमेती और डामोर कलाकार भी यहां आए हुए हैं. उत्सव का उद्देश्य है – जिनमें काबिलियत है लेकिन अवसर नहीं मिलते, उन्हें यहां मौका दिया जाता है।